प्रेम - पंचमी | Prem-panchmi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
137
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मृत्यु के पोछे ५
भिविल सर्विस । लेकिन आज तक न सुना कि को$ एडीटरी
का काम सीखने गया हो । क्यों सीखे ? किसी को क्या पड़ी
है कि जीवन की महत्त्वाकां्ाओं को खाक में मिलाकर त्याग
ओर विराग में उम्र कांटे । हाँ, जिनको सनक सबार हो गई
डो, उनकी बात ही निराली है ।
इश्वरचंद्र--जीवन का उदेश्य केवल धन-संचय करना ही
नहीं है ।
सातकी--अभी तुमने वकीलों को निंदा करते हुए कहा,
ये लोग दू सरों की कमाई खाकर मोटे होते हैं। पत्र चलाने-
আবী भी तो दूसरों की ही कमाई खाते हैं ।
देश्वरचंद्र ने बग़लें काँकते हुए कहा--“हम लोग दूसरों की
कमाई खाते हैं, तो दूसरों पर जान भी देते हैं। वकीलों की
भाँति किसी को लूटते नहीं ।”
मानको--यह तुम्हारो हटधर्मी है । वकील भी तो अपने
सुवक्छिलों के लिये जान लड़ देते है । उनकी कमाई भो उतनी
ही हलाल हैः जितनी पत्रवालों की । अंतर केवल इतना है कि
एक की कमाई पहाड़ी सोता है; दूसरे की बरसाती नाला | एक
म निस्य जलप्रवाह होता है, दुसरे में निस्य धूल उड़ा करती
है। बहुत हुआ; तो बरसात में घड़ी-दो घड़ी के लिये पानी
आ गया ।
ईैश्वर०- पहले तो में यही नहीं मानता कि वकीलों की
कमाई हलाल है, और मान भी लू, तो किसी तरद यह नहीं
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