प्रेम - पंचमी | Prem-panchmi

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : प्रेम - पंचमी  - Prem-panchmi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्रीदुलारेलाल भार्गव - Shridularelal Bhargav

Add Infomation AboutShridularelal Bhargav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मृत्यु के पोछे ५ भिविल सर्विस । लेकिन आज तक न सुना कि को$ एडीटरी का काम सीखने गया हो । क्‍यों सीखे ? किसी को क्या पड़ी है कि जीवन की महत्त्वाकां्ाओं को खाक में मिलाकर त्याग ओर विराग में उम्र कांटे । हाँ, जिनको सनक सबार हो गई डो, उनकी बात ही निराली है । इश्वरचंद्र--जीवन का उदेश्य केवल धन-संचय करना ही नहीं है । सातकी--अभी तुमने वकीलों को निंदा करते हुए कहा, ये लोग दू सरों की कमाई खाकर मोटे होते हैं। पत्र चलाने- আবী भी तो दूसरों की ही कमाई खाते हैं । देश्वरचंद्र ने बग़लें काँकते हुए कहा--“हम लोग दूसरों की कमाई खाते हैं, तो दूसरों पर जान भी देते हैं। वकीलों की भाँति किसी को लूटते नहीं ।” मानको--यह तुम्हारो हटधर्मी है । वकील भी तो अपने सुवक्छिलों के लिये जान लड़ देते है । उनकी कमाई भो उतनी ही हलाल हैः जितनी पत्रवालों की । अंतर केवल इतना है कि एक की कमाई पहाड़ी सोता है; दूसरे की बरसाती नाला | एक म निस्य जलप्रवाह होता है, दुसरे में निस्य धूल उड़ा करती है। बहुत हुआ; तो बरसात में घड़ी-दो घड़ी के लिये पानी आ गया । ईैश्वर०- पहले तो में यही नहीं मानता कि वकीलों की कमाई हलाल है, और मान भी लू, तो किसी तरद यह नहीं




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now