सड़क के किनारे | Sadak Ke Kinare
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.65 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
परिचय :-
जन्म : 11 मई 1912, समराला (पंजाब)
भाषा : उर्दू
विधाएँ : कहानी, फिल्म और रेडियो पटकथा, पत्रकारिता, संस्मरण
मुख्य कृतियाँ
कहानी संग्रह : आतिशपारे; मंटो के अफसाने; धुआँ; अफसाने और ड्रामे; लज्जत-ए-संग; सियाह हाशिए; बादशाहत का खात्मा; खाली बोतलें; लाउडस्पीकर; ठंडा गोश्त; सड़क के किनारे; याजिद; पर्दे के पीछे; बगैर उन्वान के; बगैर इजाजत; बुरके; शिकारी औरतें; सरकंडों के पीछे; शैतान; रत्ती, माशा, तोला; काली सलवार; मंटो की बेहतरीन कहानियाँ
संस्मरण : मीना बाजार
निधन : 18 जनवरी 1955, लाहौर (पाकिस्तान)
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हद
व्यक्ति) की जिन्सी वदउन्वानियों (विपयी का तजकरां चाहे
कितना ही हकीकत पर मब्नी (भाधारित) यों न हो लिखने भौर पढने वाले
दोनी के लिए तजीए-आकात (समय-नाश) है और दरअसल बह जिन्दगी के
अहमतरीन (अत्यत्त महत्वपूर्ण) तकाजों से इसी कटे फरार (पलायन)
का इजहार है जितना कि कदीम किस्म की रजतपसदी (प्रतिक्रियावाद) ** ॥
इस समाज मे कुछ झऔर भी वरगे है, कुछ श्रौर पात्र भी है जो भपनी
खोई हुई मानवता को पुर्नेप्राप्त करने के लिए सथर्पशील हैं । जो जुल्म-श्रत्या-
चार, शोषण व के विरुद्ध लड़ रहे हैं भौर एक नये संसार का
निर्माण कर रहे है । लेकिन मण्टो को नजर उन तक ने गई--या थों कहे कि
उनकी भोर देखना मण्टो ने इतना थावश्यक ने समका 1 कक
जीवन के प्रति मण्टो को कुछ विचिश-सा दृष्टिकोण था । वहां इस
समाज में रह कर इसकी गंदगी को देखते थे । उसका विरोध करते थे पर
साथ ही इस समाज को जड़ -जनता-घसे भी अलगाव ही पसन्द था ।
कृप्णुचन्द्र से शारावनोशी के समय उन्होंने कहा था :
****. जिन्दगी नहीं देसोगे, गुनाह नहीं करोगे, मौत्त के करीब नहीं
जाओगे, गम का मजा नहीं चथोगे तो कया तुम खाक लिखोगे
मण्टों ने वास्तव में मह सब किया या, मौत को उन्होंने करीब बुलाया
था भर स्वय उसके नजदीक चलते गये । मम्टो के जीवन की निराशा ने मण्टो
को सब तरफ से काट कर केजल दराव में गर्क कर दिया सौर कमी वह पागल-
खाने गये तो कभी अत्यधिक मदिरा-पान के कारण उन्हें भ्रस्पताल में रहना
पडा और एक दिन बह झाया जव बह इस ससार से हो चले गये ।
कृप्णवन्ध्ध ते मण्टो को मृत्यु पर लिखे झपने सुन्दर लेख में उन्हें श्रदा-
जलि भपित करते हुए एक जगह लिखा था :
“मण्ठों एक बहुत बड़ी गाली थी । कोई व्यक्ति ऐस! न था जिससे उसका
भगड़ा ने हुआ हो तरककीपसन्दों से खुश नहीं था, न ही गेर
से, न पाकिस्तान से, न हिन्दुस्तान से । न भन्कस साम से न
रुस से । म जाने उसकी प्यासी, देचन व वेकरार रूह बया चाहपी थी ? उसकी 1
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