राजस्थानी लोक - कथाएँ (प्रथम खण्ड) | Rajasthani Lok-Kathayen (Part 1)
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
281
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७ घर का घर में सलट लिया
एक गीदड़ ओर गीदड़ी पानी पीने के लिए तालाब पर गये | के
दोनों बहुत प्यासे थे, लेकिन तालाब के किनारे एक रोर बैठा था । शेर
को देख कर दोनों वहीं ठिठक गये और पानी पीने की कोई तरकीब
सोचने लगें । सोचते-सोचते उन्हें एक युक्ति सूझी और वे दोनों सिंह के
पास गये । सियारी ने सिह से कहा कि जेठजी, हमारा न्याय आप कर
दीजिए । हमारे तीन बच्चे हैं सो दो बच्चे मैं रखना चाहती हूँ और एक
च्चा इसे देना चाहती हूँ । लेकिन यह दो बच्चे स्वयं लेना चाहता है
और एक मुझे देना चाहता है। भला आप ही बतलाइये कि मैं एक बच्चा
केसे ले ले ? मैंने ही उन्हें जन्म दिया है, मैंने ही उन्हें पाला पोसा है ।
उधर गीदड़ भी दो बच्चों की माँग कर रहा था। तब सियारी ने कहा कि
मैं तीनों बच्चों को यहीं ले आती हूँ, जेठजी जैसा उचित समझें कर दें ।
यों कह कर सियारी पानी पीकर चलती बनी । सिह ने सोचा कि--
सियारी तीनों बच्चों को ले आये तो पूरा कलेवा बन जाएगा। लेकिन
बहुत देर बीत जाने पर भी जब सियारी नहीं आयी तो सियार ने सिंह से
कहा कि हुज्र, वह कुलछटा अभी तक नहीं छोटी है, जरूर उसकी नीयत
मे फरक है । वहु राड स्वयं दो बच्चे लेना चाहती है, मैं अभी उसे घसीट
कर लाता हूँ । यों कह कर गीदड़ भी पानी पी कर चलता बना ।
कृ देर तक तो सिंह वहीं प्रतीक्षा करता रहा, लेकिन जब उसे
भूख अधिक सताने छूगी तो सियार-सियारी का न्याय करने के लिए वह
उनकी धुरी” पर स्वयं गया और उसने पुकार कर गीदड़ से कहा कि
अपने बच्चों को लेकर जल्दी बाहर आ जाओ, तुम्हारा न्याय कर दूँ, मुझे
देर हो रही है । सिह की वात सुनकर सियारी ने अन्दर से ही कहा कि
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