राजस्थान पुरातन ग्रंथमाला | Rajasthan Puratan Granthmala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जं | भक्तमाल मे इसे एक स्वतन्त्र ग्रन्थ ही समभाना चाहिये। यह ब्रजभाषा में है, जिस पर राज- स्थायी का भी थोड़ा-सा रंग लगा है। कविता बहुत ही सरस और प्रवाहुयुक्त है 1 इसमें दिये हुये कबी र-चरित्र को मेनारियाजी ने अ्रपने राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज, भाग १ में पूर्णा रूप से उद्ध त कर दिया है। इस ग्रन्थ की श्रन्य प्रति हिन्दी विद्यापीठ, आगरा के संग्रह में है, उसके अश्रनुसार इसकी रचना सं० १८३३ के फाल्गुत एकादशी सीमवार को हुई है । ७. भक्तरसमाल-त्रजजीवनदास, रचना सं० १९१४। सन्‌ १६०९ से १९११ की रिपोर्ट में इसका विवरण प्रकाशित हृश्रा है । पंडित महावीरप्रसाद, गाजीपुर के संग्रह में इसकी प्रति है। विवरण में इसकी इलोक संख्या ८५० बतलाने से यह बहुत ही संक्षिप्त मालुम देती है। ५ हरिभक्तिप्रकाशिका टीका-खेतड़ी निवासी हरिशप्रपन्त रामानुज- दासं कायस्थ ने इसकी रचना की। जिसे पंडित ज्वालाप्रसाद मिश्र ने विस्तृत करके लक्ष्मी वेंकटेश्वर प्रेस से संवत्‌ १९५६ में प्रकाशित कीं थी। भूमिका में श्री मिश्रजी ने लिखा है कि “उद्‌ , भाषा, संस्छृत, छन्दोबद्ध श्रादि करई प्रकार की भक्तमाल इस समय मिलती हैँ तथा एक इसी भक्तमाल को दोहे-चौपाई मे मैंने भी रचना किया है, जो श्रभी तक प्रकाशित नहीं हुई है! संवत्‌ १६५५ मुरादाबाद में मिश्रजी ने इस हरिभक्तिप्रकाशिका टीका को नये रूप से लिखके पूर्ण की। ७७६ पृष्ठों का यह ग्रन्थ अवश्य ही महत्वपूर्ण है। 'हिन्दी पुस्तक-साहित्य” में रामानुजदास कृत हरिभक्तिप्रकाशिका टीका का उल्लेख है । ९. भव्तिसुधास्वादतिलक-इस की रचना प्रयोध्या निकासी श्री सीतारामशरण भगवानप्रसाद रूपकला ने संवत्‌ १९५० के बाद की है। मूल भक्तमाल व प्रियादास की टीका के साथ इसे संवत्‌ १६९५६ मे काशी के बलदेव- नारायण ने प्रकाशित की। इसका तोसरा संस्करण नवलकिशोर प्रेस, लखनऊ से प्रकाशित हुआ । इसके मन्त में प्रियादास के पौत्र शिष्य वैष्णावदास रचित भक्त- माल महात्म्य भौ छपा है। १००० पृष्ठों का यह ग्रन्थ अपना विशेष महत्व रखता है १०, सखाराम भीक्षेत कृत टीका--हिंदी में उच्चतर-साहित्य नामक ग्रन्थ के पृष्ठ ४५० में बम्बई से इसके प्रकाशन का उल्लेख है । इसी ग्रन्थ में तुलसी राम की टीका (?) मंबाउल उलूुम प्रेस, सुहाना से प्रकाशित होने का उल्लेख है तथा




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