मणि-माला | Mani-mala
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
255
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११ मणिमाल्ञा
कमरे दीन दशा का पुरा प्रमाव देख पडता है । नाम
चस्पा होने पर भी उसका रहे फाला पड़ गया है। शरीर
में कहीं सोने का छल्ला तक नहीं। लेकिन पहले सोने के
जेवर थे । उसके स्याद् निशात असी शरीर पर बने हुए ই
शोर किस तरह एक-एक कश्के थे गहने उतारे गये, इसका
इतिहास भी उस अभागिन के हाथ-पेर ओर पेट-पीठ पर
अट्डित है। यहाँ तक कि आखिरी स्बा की चोट का घाव
अभी अच्छी तरह सूखा नहीं |
बालिका धीरे-धीरे रोने छगी। तब माता आऑँचल से
उसके आँसू पेछिते-पोंछते कहमे लगी--छी बेटी, कोई रोता है !
ज़रा धीरज्ञ घरो; वे आते हैंगे |
बालिका तनिक देर तक और घूृमती-फिरती रही । बीच-
बीच में वह खिड़की के पास आकर खड़ी द्वोती और, जहाँ
तक नज़र जाती थी, देखती थी कि उसका पिता भ्राता है कि
नहीं । छोेकिन उसको निराश होना पड़ा ।
दस बज गये। बालिका ने आकर कहा--मा, श्रव
मुझसे रहा नहीं ज्ञावा। पिताजी कहाँ गये हैं ?
“वे सकानें का किराया. वसूल करने गये हैं, अभी आते
हैंगे। रुपया भुनाकर बाज़ारसे सौदा ज्लावेंगे। तुम्हारे
लिए खाने के ओर बच्चे के लिए बेदाना ही धाचेंगे । बच,
प्राते ही दमे ।
“एक वैसा दे। न अम्मा, लैया लाकर तव तक खा ॥
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