हृदय रोगों की प्राकृतिक चिकित्सा | Hriday Rog Ke Prakritik Chikitsa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारा हृदय हर या. आारकिल कहते हैं शरीर से रक्त घूम-घामकर वापस आता है और नीचे की. कोठरियों से जिन्हें निलय या विंट्रिकिल कहते हूं शरीर के विभिन्न भागों में जाता है । अलिन्द और निलय के वीच ऐसी दीवारें होती हें जिनके द्वारों से रक्त ऊपर की कोठरियों से नीचें की कोठरियों में ही आ पाता है क्योंकि इनके द्वारों पर ऐसे पट लगे होतें हैं कि जो एक ओर को ही. खुलते हैं । दाहिनी ओर की ऊपर तथा नीचे की कोठरियाँ जो क्रमश अलिन्द और निलय हैं बायीं ओर के अलिन्द और निलंध से मांसपेशी की जिस दीवार द्वारा अलग की जाती हैं उसे सिपटम या प्राचीर कहते हैं । हमारा हृदय एक मिनट में ७२ वार सिकुड़ता और फैलता रहता है । अर्थात्‌ एक दिन में १ ०० ००० वार और एक वर्ष में चार करोड़ वार सिकुड़ता और फैलता है । यदि हम अपनी मुट्ठी खोलें और बन्द करें तो अपने हृदय की इस क्रिया का कुछ ज्ञान प्राप्त हो जायगा । यदि हम अपनी मृट्ठी को एक सेकण्ड के भीतर कई बार बन्द करें और खोलें तो मुट्ठी की पेशियाँ कुछ ही मिनटों में थक जायँगी । लेकिन हृदय की मांसपेशियों की यह विशेषता है कि वें मनुष्य के मरते




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