धर्मयुद्ध | Dharmyudh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
135
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धर्मयुद्ध ] ११
ग्रादमियों से मिलने जुलने की बात इस भाव से करते कि अपने समान
आदमियों की ही बात कर रहे हों | श्रकसर कह देते--ग्राहम एेरड ग्रिरडले
के दफ्तर से उन्हें चार सो का आफर है, अ्रभी सोच रहर“ या मेकेञी
ऐण्ड विनसन उन्हें तीन-सो तनख़वाह श्रोर ब्रिक्री पर ३ प्रतिशत मय फट
क्लास किराये के देने के लिये तेयार हे, लेकिन सोच रहे हैं “+,
हमारे दफ्तर में उन्हें लोहे की सलाख़ों ओर चदरों के आडर बुक करने
का काम दिया गया था | इस ड्यूटी के कारण उन्हें दफ्तर के समय को
पाबन्दी कम रहती, घूमने फिरने का समय मिलता रहता और वे अपने आप
को साधारण बाबुश्रों से भिन्न समझते | इस काम में कम्पनी को कोई विशेष
सफलता उनके आने से नहीं हुईं थी इसलिये शीघ्र ही कोई तरक्की पा जाने
की लाल की आशा हमें बहुत साथक नहीं जान पड़ रही थी। परन्तु लाल
को श्रपने उज्ज्वल भविष्य पर श्रडिग विश्वास था । ऊँचे दर्जे के खच से
बढ़ते हुए, कर्ज की चिन्ता के कारण उनके माथे पर कभी तेवर नहीं देखे गये
आर न उनके चाय, शरबत ओर सिगरेट “आफर' ( प्रस्तुत ) करने में कोई
कमी देखी गयी । उन्हें ज्योतिषी द्वारा ब्रताये श्रपनो हस्तरेखा के फत् पर
दृढ़ विश्वास था ।
जैसे जंगल में आग लग जाने पर बीहड़ भाड़-भफंखार में छिपे जानवरों
को मेंदानों की ओर भागना पढ़ता दे ओर दुचे-दुच्च शिकारियों की भी बन
श्राती हे वेसे ही पिछले युद्ध के समय महान राष्ट्रों को परस्पर संद्वार के लिये
साधारण पदार्थों की श्रपरिमित आवश्यकता हो गयी थी। सर्वताधारण
जनता तो श्रभाव से मरने लगी, परन्तु व्यापारी समाज की बन आयी । अब
हमारी मिल को ग्राहक ओर एजेण्ट द्ू ढ़ने नहीं पढ़ रहे थे बल्कि ग्राहक
ओर एजेण्टों से पीछा छुड़ाना पढ़ रहा था । लाल का काम सदइल हो गया ।
उनका काम था मित्र के लोहे का कोटा बाटना ओर मिल के लिए त्ाभ की
प्रतिशत दर बढ़ाना | ॥
दस्तूरन तो कै° ल्लाल की तनख्वाह में कोई श्रन्तर नहीं आया परन्तु
अब थे साइकिल पर पांव चलाते दफ्तर आने के बजाय टांगे या रिक्शा पर
आते दिखाई देते | टांगे वाले की ओर रुपया फेंक कर, बाकी रेज़गारी के
लिये नहीं बल्कि उसके सत्लाम का जवाब देने के किये ही उसकी और
देखते | कई बार उनके मुख से सेकेरड हेश्ड 'शेवरले” या 'वाक्सहाल? गाड़ी
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