उर्दू की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ | Urdu Ki Sarvshreshth Kahaniyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
247
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वेक्सीनेटर १३
मैने कहा--“इमशलिये कि मँ तुम्हे चाहता हूं, रौर तुम्हें देखे बिना जिन्दा
नहीं रह सकता ।”
रेशमाँ बोली---/जी, मुर्भे सब सहेलियाँ ताने देती हैं और फिर आपका
इस तरह मेरे पीछे-पीछे फिरना ठीक भी तो नहीं ! मैं आपको गालियाँ दूंगी,
तो फिर आप'''
मैंने कहा--'तो मैंने कब मना किया है ? आप शौक़ से गालियाँ दें। मैं
उन्हें सुनता जाऊँगा और फिर इकट्ठा कर लूगा, फिर फूलों की तरह उनका
हार बनाकर अपने गले में पहन लू गा ।
रेशमाँ बोली--- “हम ठहरी अनपढ़ ! भला हमें आपकी तरह बातें बनाना
कहाँ आता है ? लेकिन मैं आपसे फिर कहती हूँ, खुदा के लिए आप मेरा पीछा
करना छोड़ दें । अब्बा आपकी जान के गाहक हो रहे हैं । कहते थे--अगर वह
लड़का न माना तो उसे कत्ल कर डालेंगे ।”
मैंने सिर भुकाकर कहा--“यह सर हाज़िर है । श्रभी गरदन उड़ा दीजिये।
अगर उफ़ भी कर जाऊं तो'**
रेशमाँ ने एक अजीब अदा से सिर हिलाकर कहा--“हाय, में यह कब
कहती हूँ कि आप मर जायें, लेकिन आख़िर'' आप चाहते क्या हैं ?”'
“मैं कुछ नहीं चाहता | मैंने अपना हाथ अपने कलेजे पर रख कर
कहा--- हाँ, सिर्फ यह चाहता हूँ, कि जब तुम यहाँ से चली जाओ्रो तो तुम्हारे
प्यारे चरणों की धूल अपने माथे पर लगा लू, ओर तुम्हारा नाम लेता हुआ
इसी दम इस संसार से विदा हो जाऊं ।
रेशमाँ मुस्कराई । एक बालिका की तरह नहीं, बल्कि एक स्त्री की तरह
मुस्कराई । उसने पलके उठाकर एक क्षण के लिए मुझे देखा, फिर वे पलकें
गुलाब के फूलों की तरह सुन्दर और कोमल कपोलों पर भुक गई । दूसरे क्षरण
वह हँसती हुई वहाँ से भाग गई | भागती जाती थी और मुड़-मुड़कर मेरी
ग्रोर देखती जाती थी ।
कुछ क्षण तो मँ चपचाप पत्थर की मूति की भांति निश्चल खड़ा रहा,
फिर मैंने भी रेशमाँ के पीछे तेजी से भागना शुरू किया । वह एक हिरणी के
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