मोहनी रामायण ( लवकुश युद्ध ) | Mohani Ramayan ( Lavkush Yuddha )

Mohani Ramayan ( Lavkush Yuddha ) by बाबू मोहनलाल माहेश्वरी - Babu MohanLal Maheshwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नस दे कर मोहनी रामायण युद्ध । [ १५ खेल घाण वाण से, झणेक . मांही फारे दें। दे फटाय घानरन फो,घान रेश डाटे. हें ५ दोहा । र्पिधार बारे में, घानर.... गये. . पढाय। यों मनोध बल एय्प के, निस्सशय मिट जाय ॥ छच ने कार प्ोध वाण सारे, फद फार चीर महि डारे हैँ। सास समर गति पुआ, रण जोधघा लड़ कर रारे हैं ॥ फर युद्ध चिपम सम्ाम जोत, थ. पि सेन जीत कर घाये दे । फिर भरत चहदां से चले तभी, सम्ाम भूमि में जाये दूं ॥ 'लखदशा सेन की खिफल भरत, भंगदू दडुमान हैं राज ब्ोइ ऐसे बचन खुनाते है ॥ ( का बंद्रों को समभाना ) है घीरों ये- तो - बड़े प्रवल, दोउ चालन्त वीर दिखाते दद । इन दोनों छेड बांध जाय, घस येद्दी करना चाहत हू ॥ सुन फर ये बात फो, अंगद लड़ने को घाये हूं! रण भूमी में रण धघीर वार, कुद्य भगद से चतराये द ॥ ( चुश झंगद संवाद ,) दोहा । हे शंगद तोहि ठाज़ नहि, करत युद्ध व्यापार! जिस ने मारा पितु बना, उस का सेवा कार ॥ मस्वाय पिठु अपने को तू, माता को पराये घरम कर । |. साया है छाज छोड़ लड़ने; घिककार चीर जा झ्बके मरा




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