देव-सुधा | Dev Sudha

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Dev Sudha by शुकदेव बिहारी मिश्र - Shukdev Bihari Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका यह भूमिका महाकवि देव-क्रत स्फुट दोहों को एकत्र करके बनाई गहै है । पाठक महाशय इन कविवर के ऐसे विचार इन्हीं के शब्दों में सुनं-- (१) সাখনা इंदु-कलित सुंदर बदन मनमथ-मथन-बिनोद । गोबरधन-गिरि जास बन, बिहरन गोपति गोद& ॥ १॥ श्रीराधे बत्रजदेवि जे सुंदर नंदकिसोर। दुरित हरौ चित के चिते नेसुक दे टग-कोर ॥ २॥ राधा कृष्ण किसोर युग पद बंदों जग-बंद । मूरति रति सिंगार की सुद्ध सच्चिदानंद ॥ ३॥ গাবাঘা हरिप्रेम-बस सरस सिंगार उदार | छ रितु बारहो मास गन बृदा-बिपिन-बिहार ॥ ४॥ हरिजसरस की रसिकता सकल रसायनि-सार | जहाँ न करत कदथेना यह अनथ संसार ॥ ५४॥ ® जिसका वन गोवद्ध न-गिरि हे, शोर जो गउश्रों के स्वामी नंद भेष की गोद में बिहौर करता हे ।




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