आनन्द रघुनन्दननाटक | Anand Raghunandan Natak

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Anand Raghunandan Natak by विश्वनाथ सिंह - Vishwanath Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छ आ०्रण ना० प्र । (इति निःकरांतो तप्यं सानंद्‌गानं) भजन्‌ । भुजपूरके भाषामः॥ करमनद्धोडादीडइगोरेलखिनि । चारमञय . कातर्‌मरलख्ान ॥ নানভ্াউনাহনভীলব্বিনি 1 इितकरजांगंसइितहम सबलोगबनकर जयराबंचवर्लार्खा .. रमआंगविसनाथबराबर दोउगोंटछोड़ाबरबलपलखिनि ॥ अली. ` ` भागनित दोइठो लारका आय हं। चार भज को येक तीर ही ४ ল- 7 साइत हम सबलोगन के जोव बंचाये हैं। जिनके अंग नरम हैं ओ विद्यवाद्र कहे महादेकी परोचर बल पाये हैं ॥ (জলি जंहेाय होय ) ( उत्याय मवनहित आत्मगतं ) आद्रम म. ज्य सार इड्‌ रह दहं कान को है || के জা (हाय हतकारा डालघराधर मौंकों मछत छोडि कहांगये ॥ अविष्य शिव्य: | भो गुरो राजक्षपम को मारि हितकारी हमारी सब ` का.रचा क।र्‌ अव शाच में हुं गरकहार हिंगये हम शुर्ःसहष | शीघ्रहा कवर को यई ल्यावी द्वाता राज्षतन শী হাতি ~. त मद्ये मलीनही हो रही हे।इगी নি সি | शिल्पेनि:कंतः सवधु हितकारीप्रयश .. জুক্নপ্থিন: 1 অন্য बड़ोकाम क्रियो आयी सिर संयो |. सिद्ठाश्रमः अब यत्रार्थ नाम भयो चला आश्रम कां ॥ मी . इति निःकता ॥ (तत बि्षतिपपरिकरोद्विगजानःो 1: ~ ` | : ्द्गिज्सन्‌; | मरी कुमारन कैं गये चहल शील भये सधिन पाई | 4 . अधिश्य शिऋ आपशि द्त्वा | महाराज में न कही है की आपबरी এ `.“ ` र्त्‌ [इतरो ` रा न ५ राजतन की संघार किये हम निर्बिन्न यज्ञ | ले. गुरुप सधिजनावाो हा चर *২২ कै




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