बीजक कबीरदास | Bijak Kabirdas

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Bijak Kabirdas by विश्वनाथ सिंह - Vishwanath Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २ ) होता है | धार्मिक श्रद्धा का जब हास होने लगता है। आचार-विचार में अउता आती-नाती है। स्वाय की मात्रा जब सीमोल्नप्न कर जाती है। दान- दया का दिवाला निकल जाता है; अपना ही अपना जब अच्छा लगता हैं, दससरे के हुख-सुख में सहदयता प्रदशन अनावश्क शिष्टाचार प्रतीत होने लगता है। तभी कोई-न-कोई ऐसे भगवद्धक का अचतार होता है। जो अपनी आदशे सच्चरित्रता/ निमेल अतःक्रण) परोपकार ह॒त्ति, अल्य संतोष। सच्चे आत्म-वान) निःस्पृह् सेवा-सुभ्षषा। एकाग्रता ओर एकनिहठत्ता के कारण पन॒ष्षों के रहन-सहन। आवार-विचार आदि पर ऐसा प्रभाव डालते हैं कि वे फिर अपने बहके हुए याग से हटकर सच्चे ओर सीधे रास्ते पर आनाते हैं । इन्हीं सब उद्देश्यों की पूति को ही अपने जीवन का आदशे बनाके पहात्मा कबीरदासजी भी अपना संसार-यात्रा कर रहे थे । कवीरणी के जनन्‍्य की कथा भी बड़ी विचित्र हैे। इनका जन्म पनद्रहवीं शताब्दी में हुआ था। इनके जन्म की कथा इस प्रकार हैं--एक विधवा बराह्मणी किसी सिद्ध साथ की सेवा-सुझ्षषा में समव-य|पन करती थी | एक दिन साधु उस पर बड़े प्रसन्न हुए ओर उसे आशीषाद दिया, बेटी। पुत्रवती हो | यह सुना वह ब्राह्मणी बड़ी लज्जित हुई ओर हाथ जोड़ कर विनय करने लगी) महाराज) में अभागिनी विधवा हूँ | आपने यह कैस। आशीवोद दिया १ इसमें तो मेशा बढ़ा अपयश होगा। साधु ने कह। में जो कुद कह चुरा वह भिथ्या नहीं हो सकता । खेर। यथासमय उस ब्राह्मणी को एक _युत्र हुआ । लज्जावश ओर अपयश के डर से बह उस नवज्ञात शिशु रतारा तालाब के पास छोड़ आई | सुबह नीरू नाम का एक जुलाहा उधर हां के ।बफुला | उसके कोई सतान ने थी। उसने लड़के का पढ़ा देखकर। उठा लगा आर अपने घर ले आया | ञ्लरी से सब हाल कहा । वह बड़ा प्रसन्न हुई ओर उसका अपने पुत्र को ही तरह सलालन-पालन करने लगी । पर हिंदी-नवरत्न के लेखक मिश्रत्रंधु इसे मनगहन्त कथा कहते हैं । उनका कहना है कि कबीर नीरू ओर नीमा के ही ५त्र थे; कारण) इन्होंने अपने को बार- बार काशी का जुलाहा कहा है। ब्राह्मण्ी का मातृत्व कहीं नहीं वणेन किया है। इतने ही से इनका ब्राह्मणी का पत्र न होना सिद्ध नहीं होता। नीरू आर नोमा की भी नहीं मालुम था के वास्तव में वह नवज्ञात शिश किसका 8 8 लड़का था। उन्हने ता. उस पड़ा पाया था । फिर यह बात कबीर या ओर




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