प्राचीन भारत की प्रशासनिक व्यवस्था में परिवर्तन की प्रक्रिया एक आलोचनात्मक अध्ययन | Pracheen Bhaarat ki Prashaasanik Vyavastha Mein Parivartan Ki Prakriya Ek Aalochanatmak Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(10) लोग उपस्थित होते थे। जिसमें 4 ब्राह्मण, 8 क्षत्रिय, 21 वैश्य, 3 शुद्र और 1 सूत था। इसमें जो निर्णय होते थे, उन्हें राष्ट्र के सम्मुख भेज दिया जाता था। तत्पश्चात उन्हें “राष्ट्रीय” के पास भेज दिया जाता 2 पुरानी पद्धति के अनुसार समिति या संसद तो अब भी विद्यमान थी, परन्तु अब उसका तथा उसकं भाषणों का कोई विशेष महत्व महत्व नहीं रह गया था} राष्ट्र या राज्य प्रशासन के सम्बन्ध में भी कई महत्वपूर्ण बातें महाभारत से ज्ञात होती हैं। शांतिपर्व में कहा गया है, कि प्रत्येक ग्राम में एक अधिपति की नियुक्ति की जाय। फिर क्रमशः दस, बीस, सो और एक हजार ग्रामों के शासक नियुक्त किये जाएँ। ग्राम के शासक को “'ग्रामिक'” दस ग्रामों के शासक को 'दशिक', बीस ग्रामों के शासक को “'विंशाधिप'', सौ ग्रामों के शासक को 'शतपालः' और हजार ग्रामों के शासक को “सहस्त्रपति” कहते थे।/ जनपद के अंतर्गत जो नगर थे , उनके लिए एक-एक ` सर्वार्थं चिंतक' शासक की नियुक्ति की जाती थी।5 कर सम्बन्धी विषयों के लिए भी कई महत्वपूर्णं जानकारी हमे महाभारत से पता चलती है। महाभारत के अध्ययन से ज्ञात होता है, कि प्रजा से कर वसूल करते समय उदारता का परिचय देना चाहिए, अर्थात प्रजा से कठोरता के साथ कर ग्रहण नहीं करना चाहिए 1... महा०शांतिपर्व, 85, 7-9. “चतुरों ब्राह्मणान्‌ वेद्यान्‌ प्रगल्भान्‌ स्नातकाज्शुचीन। द क्षत्रियाश्च तथाचाष्टौ बलिनः शस्त्र:पाणिनः | 17 वैश्यान्‌ वित्तेन सम्पन्नानेक विशति सख्या । तीस्व शृद्रान विनीताष्वश्चुचीन कमणि पुर्वकं । /8. अष्टाभिश्व गुणैयुक्तः सृतं पौराणिकः तथा। 2. वही, 12. ततः सम्प्रेषयेदाष्ट्रे राष्ट्रीयाय च दशयेत्‌ 112 3. वही, হালি দল, 85, 12. 4. वही, श्लोक 3-5, 7-8 ग्रामस्याधिपतिः का्योदशग्राम्यास्तथा परः! दिगुणायाः शतस्यौवं सहस्रस्य च कारयेत ।/3 ग्रामीयान ग्रामदोषाश्व ग्रामिकः प्रतिभावयेत्‌। तानङ्लयाद दशपायासौ स तु विशातिपयावे।/4 सोऽपिविशत्यधिपतिरवृत्तं जानपदे जने। ग्रामाणां शतपालाय सर्वमेव निवेदयेत्‌1।5 ग्राम ग्रामशताध्यक्षो भोक्तुमर्हति सत्कृतः 117 शाखा नगरमहस्तु सहस्त्र पतिरुत्तमः 1/5 5. वही, 10, नगरे नगरे वा स्यादेकः सवर्था चिन्तकः1110 .... 6... वही उद्योग पर्व, 34, 17-18




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