अध्यात्मकमलमार्तण्ड | Adhyatma Kamal Martanda

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Adhyatma Kamal Martanda by कवि राजमल - Kavi Rajmal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५६ वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमॉला जीवो ज्ञानावरण, दशनावरण शरीर मोहनीयकर्मका विशेष उदय पाया जाता है ओर कर्मोदयसे जिनकी चेतना मलिन हे--राग- देपादिसे आच्छादित है--वीर्यातरायकमके किंचित्‌ क्षयोपशमसे इृष्ट अनिष्टरूप काय करनेकी जिन्हें कुछ सामशथ्य प्राप्त हा गई है ओर इसलिए जो सुख-दुःखरूप कमेफलके मोक्ता है, पेसे दोडन्दि- यादिक जीरवोकि मुख्यतया क्मचेतना होती है५। जिन जीरवोका मोहरूपी कलंक धुल गया है, ज्ञानावरण, दशेनावरण ओर बोर्यातराय कमके अशेष क्षयसे जिन्हें अनन्त- ज्ञानादिकगुणोंकी प्राप्ति होगई है, जो कम और उनके फल भोगन- में विकल्प-रहित हैं, आत्मिक पराधीनतासे रहित स्वाभाविक श्रनाकुलतालक्न एरूप युग्वक। सदा आस्वादन करते ह । ऐसे जीव केवल ज्ञानचेतनाका ही अनुभव करते हैं 1 । परन्तु जिन जीवोंके सिफ दशनमोहका ही उपशम, क्षय अथवा क्षयोपशम होता है. जो तस्वाथके श्रद्धानी हैं अथवा दशनमोह- के अभावसे जिनकी दृष्टि सूहमार्थिनी हो गई है--सृूद्म पदार्थका अवलोकन करने लगी हे-ओर जो स्वानुमबके रससे १रिपृण हैं, # श्रिन्य तु प्रकषतस्माहमलीमसनापि प्रकृष्जानावरणमुद्रितानुभावे ने चेतकस्वभावेन मनाग्वीयान्तरायज्षयोपशमासादितकायकारशसामश्या: मुल्रदु/स्वानुरूपकम फला नु भवनसंत्रलितमपि कार्यमब प्राधान्येन चेतयंते ॥ +पंचाश्ष्ि० तत््व० टी० ३८ + ग्रन्यतरे तू प्रक्ञालितमकलमोाहकलंकेन समुन्छिन्रकृत्सज्ञाना- वरणुतया:ल्यंतमुन्मद्रितममस्तानुमावेन चेतकल्वमावेन समस्तवीयोतरायक्ष- यासादितानंतवीय। अ्रपि निर्मेणकमफललादत्यंतकृतकृत्यत्वान्य स्वतोड्व्य- নান লামানিন লু ज्ञानमेव चेतयंत इति । --प॑चासि° तन्व रीर ইভ




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