अध्यात्मकमलमार्तण्ड | Adhyatma Kamal Martanda
श्रेणी : अन्य / Others
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
109
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५६ वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमॉला
जीवो ज्ञानावरण, दशनावरण शरीर मोहनीयकर्मका विशेष उदय
पाया जाता है ओर कर्मोदयसे जिनकी चेतना मलिन हे--राग-
देपादिसे आच्छादित है--वीर्यातरायकमके किंचित् क्षयोपशमसे
इृष्ट अनिष्टरूप काय करनेकी जिन्हें कुछ सामशथ्य प्राप्त हा गई है
ओर इसलिए जो सुख-दुःखरूप कमेफलके मोक्ता है, पेसे दोडन्दि-
यादिक जीरवोकि मुख्यतया क्मचेतना होती है५।
जिन जीरवोका मोहरूपी कलंक धुल गया है, ज्ञानावरण,
दशेनावरण ओर बोर्यातराय कमके अशेष क्षयसे जिन्हें अनन्त-
ज्ञानादिकगुणोंकी प्राप्ति होगई है, जो कम और उनके फल भोगन-
में विकल्प-रहित हैं, आत्मिक पराधीनतासे रहित स्वाभाविक
श्रनाकुलतालक्न एरूप युग्वक। सदा आस्वादन करते ह । ऐसे जीव
केवल ज्ञानचेतनाका ही अनुभव करते हैं 1 ।
परन्तु जिन जीवोंके सिफ दशनमोहका ही उपशम, क्षय अथवा
क्षयोपशम होता है. जो तस्वाथके श्रद्धानी हैं अथवा दशनमोह-
के अभावसे जिनकी दृष्टि सूहमार्थिनी हो गई है--सृूद्म पदार्थका
अवलोकन करने लगी हे-ओर जो स्वानुमबके रससे १रिपृण हैं,
# श्रिन्य तु प्रकषतस्माहमलीमसनापि प्रकृष्जानावरणमुद्रितानुभावे
ने चेतकस्वभावेन मनाग्वीयान्तरायज्षयोपशमासादितकायकारशसामश्या:
मुल्रदु/स्वानुरूपकम फला नु भवनसंत्रलितमपि कार्यमब प्राधान्येन चेतयंते ॥
+पंचाश्ष्ि० तत््व० टी० ३८
+ ग्रन्यतरे तू प्रक्ञालितमकलमोाहकलंकेन समुन्छिन्रकृत्सज्ञाना-
वरणुतया:ल्यंतमुन्मद्रितममस्तानुमावेन चेतकल्वमावेन समस्तवीयोतरायक्ष-
यासादितानंतवीय। अ्रपि निर्मेणकमफललादत्यंतकृतकृत्यत्वान्य स्वतोड्व्य-
নান লামানিন লু ज्ञानमेव चेतयंत इति ।
--प॑चासि° तन्व रीर ইভ
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