श्रीविष्णुसहस्रनाम | Sri Vishnu Sahsra Nam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
288
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आडूरभाष्य ६
मिना विस | कन मन
प्राणिनां कीतय. यशांसि खशक्त्या- ¦ प्राणियोके यको उनम अपनी
{ शक्तिसे प्रविष्ट होकर बढते है, जो
सवेश वधयतीति तम् सेका लेकनाथ अर्थात् छोकोसे प्रार्थित अथवा
थ्यते लोकानुपतापयते शासते
लेकोंको अचुतप्त या शासित करने-
वाले अथवा उनपर सत्ता चलानेवाल़े
लोकानामीष्ट इति चा छोकताथः तम् , हैं, जो अपने समस्त उत्करषसे वर्तमान
| होनेके कारण महद् अथौत् ब्रह्म तथा
महत् ब्रह्म-विश्वोत्करेण অবমান- | महदूभूत थानी परमार्थ सख है ओर
जिनकी सक्निधिमात्रसे समस्त मूतोका
त्वात् द्द शूत प्रमाथसत्यम् सन- ' उत्पत्ति-स्थान सेसार उतपन्न होता है
इसलिये जो समस्त भूतोके उद्भवस्थान
है उन परमेश्वरका [स्तवन करनेसे
दुद्धवतीति सेमूतमबोद्धव' तम् ॥७॥॥ मनुष्य सव दुःखोसे छूट जाता है ]॥७॥
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भूतानां भवः संसारो यत्सकाशा- |
पश्चर्म प्रशन॑ परिदरति-... अब पॉचवें प्रश्नका उत्तर देते है-.
एष मे स्वधमोणां धर्मोऽधिकतमो मतः
यद्भक्त्या पुण्डरीकाक्तं स्तवैरर्चेन्नरः सदा ॥८॥
एष , में, सर्वर्र्माणाम, धर्म, अधिकतम , मतः |
यत्, भक्त्य पुण्डरीकाश्टम्, सवैः, अर्चेत्, नर , सदा ॥
सर्वेषा चोदनारुश्षणानां धर्माणामेष' सम्पूर्ण विधिरूप धर्मोमे मैं
वक्ष्यमाणो धर्मोऽधिकतम इति मे मम ¦ आगे बतलाये जानेवाले इसी धर्मको
मतः अभिप्रेतः, यद्भक्त्या বাধ | सबसे बड़ा मानता हूँ कि मलुप्य -
पुण्डरीकाक्ष हृदयपुण्डरीके प्रकाश- | श्रीपुण्डरीकाक्षका अर्थात् अपने 'ट्दय-
मान - बासुदेव क्तवेगुणसङ्कोतेन- ` कमठे विराजमान मगवान् वाघुदेवका
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