पुरातत्त्व - निबंधावली | Puratatv - Nibandhavli

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Puratatv - Nibandhavli by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुरातत्व ५ भी বজ। बे व्यग्न रहे कि, कहीं असावधानीसे वह सामग्री नष्ट या लुप्त न हो जाय! जब में १९३२ ई० के नवम्बरमें पेरिसमें था, तब उन्हें काहमीरसे पत्र मिला था, जिसमें किखा था कि, हस्तलेखोंका मिरूपण (८76) कियो जा रहा है { कहाँ वह आक्षा रखते थे कि, इन अठारह महीनोंमें उन पुस्तकोंके नाम आदिके विषयर्मे कोई विस्तृत विवरण भिलेना और कहाँ पत्र जा रहा है कि, गुप्त-लिपिमें लिखे ग्रन्थोंका निरूपण किया जा रहा है! यदि. ग्रन्थोंका प्रकाशन या विवरण तैयार न करके अठारह महीने सिर्फ निरूपणमें ही लग जाते हैं, तो कब उन्हें विद्वानों के सामने आने. का मौका मिलेगा ! आचायें लेवीने कहा था कि, पूरे अठारह महीने हो गये, ऐसा अद्भुत ग्रन्थ-समुदाय भारतमें मिला है जिसे रोग केवल चीनी ` और तिब्बती अनुवादोंसे ही जान सकते थे; परन्तु उसके बारेमें भारतमें ` इस तरहका आलस्य है, यह भारतके लिये रज्जाकी बात है! भारतीय पुरातत्त्वके साहित्यके बारेमें यदि आप पूरी जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो उसे आप हालेंड-निवासी डा० फोगल और उनके सहयोगियोंके परिश्रमसे निकलनेवाली वाषिक पुस्तक “71% 404 22046200) / 1४40 4८0०८०20 से जान सक्ते है । ४---पुरातत्वोत्लननके लिये एक सेवक-दलकी आवश्यकता . पुरातत्व-सम्बन्धी खोज और खननका सारा भार हम सरकारपर ही नहीं छोड़ सकते। सभी सभ्य देशोंमें गैर सरकारी लोगोंनें इस विषयमें बहुत काम किया है। अर्थे-कृच्छृताके कारण गवरनंमेंटने पुरातत्वविभागके खर्चको बहुतही कम कर दिया है। भारत सरकारके शिक्षा-सदस्यके भाषणसे यह भी मालूम हुआ हैं कि, सरकार विदेशी विद्वविद्यालयों तथा दूसरी विश्वसनीय संस्थाओंकों भारतमें पुरातत्त्वसम्बन्धी उत्सननके. ` लिये अनुमति दे देगी । एेसा करनेसे नि्वय ही भारतके इतिहासकी बहुतसी बहुमूल्य सामग्रीको--जो आमें खुदाईमें निकलेगी--वह संस्थाएँ




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