सोहन काव्य-कथा मंजरी | Sohan Kavya Katha Manjari

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Sohan Kavya Katha Manjari by श्री वल्लबमुनिजी - Shree Vallabmunijee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज्ञान लगाकर देखा देव ने, लज्जा तो है इन माँही, उस ही क्षण सब समेट माया, आवाज दी गुरुवर ताँही। आँखें खोली कुछ नहीं दीखा, शिष्य कहे सब समभाई, यह सारी मेरी माया थी, मैं विनोद हूँ ग्रुरुराई। गुरु कहे मैं भ्रष्ट होगया, कैसे मुझे बचाओोगे ॥११।॥ देव कहे सब स्वर्ग नरक है, फरक नहीं जिन वचनों मे, कुछ ही क्षण में डिगे आप तो, श्रद्धा नहीं प्रभ्नु कथनों में । देखा आपने छः महीने तक, भूख प्यास का पता. नहीं, तो कैसे आवे यहां देवता, नाटक में रहे मस्त वहीं। जीवन सफल तभी होवेगा, संयम आप निभाश्रोगे ।१२।। उसदही क्षण ले संयम फिर से, शुद्ध साधना कीनी है, জিন वचनों पर श्रद्धा करके, राह मुक्ति की लीनी है। प्राज्ञ प्रसादे सोहन मुनि कटै, श्रद्धा बिन मुक्ति नाही, देव, गुरु श्रु दया धर्मं को, लो जीवन में श्रपनाई। जन्म मरण के दावानल से, सद्य मुक्त हो जावोगे ।।१३।।




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