श्री नवपदार्थदर्पण | shree navpadarthdarpan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
269
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मूलचन्द किसनदास कापड़िया - Moolchand Kisandas Kapadiya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११)
दरदासके नामसे दुकान खोर दी । आपकी करकत्तेवारी दूकान:
व लखनऊवाली दूकानने खूब तरक्की की। ल्खनऊकी दूकानसे'
चिकनका माल कलकत्तेकी ट्कानके अलावा ओर मी बहुत दूर २ बड़े २
शहरों ( बंबई, अहमदावाद, दिल्ली आदि स्थानों )में जाने लगा।
आपके भतीजे लाला दामोदरदासजी बहुत बुद्धिमान व परोपकारी
थे। लखनऊ जेन सभाके मंत्रित्वका काये २३ वषतक लाला
दामोदरदासजीने बहुत उत्तम रीतिसे किया था। लखनऊमें नो
कछ धमकी रौनक दै वह लाला दामोदरदाप्तनीके ही गाढ़ प्रयत्नका
फल है | लाला दामोदरदाप्तनी कचहरीके कायमिं भी बड़े चतुर
थे, वकीलोंको भी आपकी सम्मतिसे लाभ पहुंचता था। श्वतांबर
जन समाजके साथ नो श्री सम्मेदशिखरजी पुनाका मुकदमा चरा
था उप्तमें लाला दामोदरदासजीकी प्रामाणिक गवाहीका ह|ईकाटके
जनोंपर भी अप्तर पडा था | आप धर्मके कामोमें हरतरहसे मुस्तेद
रहते थ्रे। ला० दामोदरदापसनीने ही छा० निनेश्वरदासनीको
व्यापरका कार्य सिखाकर बहुत होशियार कर दिया था | ला ०विशे-
इवरनाथजीने ३ मरतबा श्री सम्मेदशिखरजीकी यात्रा की थी, ओर
भी बहुतसे तीर्थाकी आप यात्रा कर चुके थे | आपने अपनी ६०
वषकी उमरसे ही रात्रिमें पान पानी वंगेरह कुल चीजोंका त्याग कर
दिया था | आप हर अष्टमी, चतुदंशीको एकाशना करते थे |
आपने अपनी कोटी छापाबाजारमें एक मनोज्ञ चत्याख्य श्री चन्द्र-
प्रभु भगवानका बनवाया था उमे रोजाना आप पुजन करते ये ।
आपको उाक्टरी दवारईका भी जन्मपयेन्त त्याग था। बानारकी
कुल मिठाई व पूरी वगेरहका भी आपको त्याग था। इप्तके अरावा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...