आंध्र प्रदेश : लोक संस्कृत और साहित्य | Andra Pradesh : Lok Sanskrit Aur Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रदेश और लोग 7 काफी मिलती-जुलती हैं। जंसे कि छोटा या मध्यम कद, लंबा या उठा हुआ मध्यम आकार का सिर, सामान्य भौंहें, छोटा मगर चौड़ा चेहरा, मध्यम आकार की लेकिन उठी हुई नाक, सीधे बाल, लहराती वेणियां भौर सामान्यतया गेहुंआं रंग । | आँध्र प्रदेश के दूसरे निवासियों को हम दो वर्गों में बांट सकते हैँ । पहला दक्कन के पठार के वनों भौर पठेतीगक्षेत्रो मे रहता है। दसरा कृष्णा ओौर गोदावरी नदियों के दोआब वाले विस्तृत क्षेत्रो मे रहता है । वनवासियों का रूप-आकार मस्टेलियाई उप- जाति के लोगों से मिलता-जुलता है । श्रोशलम्‌ पहाड़ियों के चेंचु लोग इस वर्ग में आते हैं। उनका कद छोटा, लंबा सिर, स्पष्ट उभरी भोंहें, बाहर को निकला हुआ मुंह और नाक चौड़ी होती है। त्वचा का रंग सामान्य तोर पर गेहुंआं और बाल काले तथा घुंधरदार होते हैं। दक्षिण भारत के अधिकांश कबीलों का रूप-रंग इसी प्रकार का है यद्यपि पूर्वी सागर तट पर रहने वाली कुछ जातियों, जैसे कि यनादी और पेरुकल में मंगोल विशेषताएं नहीं होतीं । भूमध्यसाग रीय उप-नीति में भी इनकी समानताएं देखी जा सकती हैं । भद्राचलम्‌ ओर सिहाचलम्‌ पव॑तीय क्षेत्रों में बसने वाले गदब, सबर और कोया जातियों का रूप-भाकार मंगोल भौर भस्द्तियाई जातियों का मिला-जुला रूप है । मेदानी क्षेत्रों मे रहने वले लोगों में भूमध्यसागरीय विशेषताएं दिखाई देती है । मन्य नृतत्वशास्त्रीय वर्गीकरणों की तरह यह वर्गीकरण भीन तो वैज्ञानिक ही है और न यथार्थ पर आधारित है। अतः सुविदित कारणों से इन पर विश्वास नहीं किया जा | सकता । फिर भी यह कहा जा सकता है कि यद्यपि आँध्र के लोगों का संबंध मुख्य रूप से भूमध्यसाग रीय उपजातियों से है लेकिन सदियों के परस्पर मेल-जोल के फलस्वरूप उनकी विलक्षणताएं लगभग समाप्त हो गयी हैं । प्रागंतिहासिक काल से ही तेलुगु प्रदेश में वर और पर्व॑तीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग तथा अन्य कबीले शामिल किये जाते हैं। सागरतटीय क्षेत्र में कुछ और कबीले भी रहते थे। इस समय आंध्र प्रदेश में 14 लाख जन-जातियों के लोग ओर 50 लाख खानाबदोश तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लोग हैं। ये लोग बंगाल को खाड़ी के तटीय क्षेत्र ओर पहाड़ी पट्टी में श्री काकुलम जिले की भद्वागिरि एजेंसी से लेकर खम्मम और गोदावरी जिलों की भद्राचलम एजेंसी तक फैले हैं। यह जनजाति क्षेत्र बस्तर, दंडकारण्य और विदर्भ के जन-जाति क्षेत्रों से मिला हुआ है। आँध्र प्रदेश के आठ जिलों में 33 जनजातियों के लोग रहते हैं। इनमें महत्त्वपूर्ण हँ खोंड, कोलमी, नायकपोड, कोया, कोंडाडो र, बाल्मीकि, भगत, सबर, जटायु, गादब ओर चेंच। इन पर आय॑ सभ्यता का प्रभाव पूरी तरह से नहीं पड़ा है। लेकिन हन्द धमं की बहुत सी बातों को इन्होने अपना लिया है । इसके बावजूद इन जातियों में अपने प्राकृतिक देवी-




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