तुलसीदास | Tulsidas

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Tulsidas by चन्द्रबली पांडे - Chandrabali Panday

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तुलसीदास जीवन-वृत्त विश्व-साहित्य में महात्मा तुलसीदास का चाहे जो स्थान हो पर हमारे हृदय में उनका जो स्थान है वह किसी भी देश में किसी भी कवि के प्रति किसी का क्या होगा ! नाभादास जेसे संत पारखी ने कुछ सोच समझकर ही उनके संबंध में लिख दिया हे-- फलिकुटिल जीव निस्तार हित बाल्मीकि “तुलसी ” मयो । न्नेता फाव्य निबंध फरिय सत कोटि रमायन | इफ श्रक्षर उद्धर ब्रह्महत्यादि परायन | श्रव भक्तनि सुख देन बहुरि लीला बिस्तारी | राम चरन रस मन्त रहत श्रहट निचि ब्रतघारी | संसार श्रपारके पार फो युगम रूप नवका लयो । फशिकुटिल जीव निस्तार हित बाष्मी “वुलसी भयो ॥ श्री भक्तमाल; १० ७६२ 'बारपीकि तुलसी मयो' मे जो बात की गई है उसकी व्वा तो गे चल कर होगी । बताना तो यहाँ यह है कि प्रियादास ने इसकी टीका में तुलतीदास के रूप की व्याख्या न कर उसके जीवन के विषय, में कुछ बता कर, इसकी पूर्ति भर की है | प्रियादास का कथन है-- तिया सो सनेह, बिनु पूछे पिता गेह गई, भूली सुधि देह भजे, वाही ठौर श्राये हैं। बधू अ्रति लाज मई, रिसि सा निकसि गई, प्रीति राम नई, तन हाड़ चाम छामे हैं। सुनी जब बात मानौ होद गयौ प्रात, वह पाछे पछितात, तजि काशीपुरी धाये हैं। कियों तहों «बास, प्रभु सेवा ले प्रफास कीनौ, लीनो हद्‌ भाव; नैन स्प के तिसाये हैं। अवतार




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