नारी - जीवन : कुछ समस्याएँ | Naari-jeevan Kuch Samasyaen

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Naari-jeevan Kuch Samasyaen by रामनाथ सुमन - Shree Ramnath 'suman'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पत्नियाँ, जो पतियो को खा जाती हैं ! ] १६ ही लग गई है] पति की श्रनुपस्थिति मँ उसकी दशा बडी खराब हो जाती है, इसलिए, चाहे कैसी कठिनाई हो, सदा पति के साथ जाने का उसका आग्रह रहता है। इतना ही नहीं। किसी सभा में भाषण देते जाना हेता दै, तो खरी को एक जगह रखकर जाते ह; पर कीं किसी मित्र से भेंट हो गई और कुछ देर लग गई, तो फिर लौटने पर वह ज्वालामुखी फ्रट्ता है कि वेचारे हक्‍्के-अक्के हो जाते हैं। इस पर मीव ची समती दै किं इस पुरुष के जीवन पर विजय का रहस्य वह जानती है| एक बार कही बातचीत के सिलसिल्ले भें, उस स्त्री से मैंने कह दिया कि तुम्हारे कोई लडकी नहीं है, यह दुःख की बात है। लडकी !” जैसे वह बढी भयग्रस्त होकर बोलीं हो-- “नही ; मुझे स्वप्न में भी लडकी “न चाहिए। आज इनका (पति का) मेरे ऊपर जो प्रेम है, कहीं उससे ज्यादा लडकी पर हो गया तो ठव तो मेरा नाश ही समझो ।? इस बहन को चार लडके हैं और चारो को उसने अपने प्रेम के पञ्चे मे ऐसा दबोच रखा है कि उनका विल्कुल विकास नहीं हो रहा है ओर न पिता के प्रति उनका कुछ विशेष ममत्व है। पत्नी के प्रेम-पाश मजो पुरुष इस प्रकार पसे हुए है, उनको संसार के लिए वेकार ही समझना चाहिए ] वे पंगु एवं मृतप्राय-से जीवन बिता रहे हैं | प्रत्येक दिन और प्रत्येक रात इन्हें अकाल-मृत्यु की ओर लेजा रही है। पत्नी के जीवन-शोषक प्रेम की जोक इनके जीवन में लग गई है ओर फाँसी का कार्य धीर-गति से चल रहा है। जी ही इनके जीवन का मारक तख्ता है; र्रीही रस्सी है। इनके कान में




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