जातियों को सन्देश | Jatiyon Ko Sandesh
श्रेणी : आलोचनात्मक / Critique
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ७ ]
फिर भी वे दोष और पाप हसमेंसे अनकोंके हृदयोंमेंसे फूटे पड़ते |
हैं। वैसे तो वे पाप--वे घुराइयाँ--खय्यं ही निंय और घृरित हैं, :
परन्तु उनको मारे द्वारा जो उत्तेजना और जय प्राप्त होती है,
उनसे वे और भी भयङ्कर दो जाते है ।
मनुष्यके इतिहासमें सदैवसे ऐसा होता चला आया है कि
-कश््योको तो खयं दुःख मोगना पड़ता है भौर क दूसरोंसे दुःख
भोगवात्ते--दूसरोंको दुःख पहुँचाते हैं ॥ पाप पर हमारी सम्पूर
विजय कभी नहीं हो सकेगी। कभी हम उस पर न्यूनांशमें विजयी
होंगे और कभी अधिकांशमें। बस हमारी सभ्यतामें यह एक
निर्मिमिष और अटल कारवाई है जिसमें कभी हम पाप पर आक्र-
मण कर लेंगे, कभी पाप हम पर आरूढ़ हो जायगा। यह कारं-
बाई उसी प्रकार होती रहेगी जिस अ्रकार दीपकमें जलने और .
प्रकाश करनेकी कारवाई होती रहती है। ৭ 4
सम्पूर्णताके अनादि आदशे और कार्यनिर्माणकी अपूर्णता या
अधूरेपनमे जो पारस्परिक अनमेल या विरोध दै, सारी सष्टिम
उस विरोधको एेसा उपयुक्त खान दिया जाता है जिसमें वह
बेढंगा न जान पड़े | आदश--हमारी आत्माके अन्तर्गत आदशे--
तो अनादि कालसे यही प्रयत्न करते आ रहे हैं कि हस, हमारे
कार्य और हमारे निर्माण बिलकुल निर्दोष, सम्पूर्ण, सुन्दर और
उपयुक्त हों; परन्तु हममें इन्द्रियोंसे प्रेरित जो वासनाएँ और
'लालसाएँ हैं, वे खयं हमारे और हमारे ऋृत्योंके पूण सुन्दर और
उपयुक्त होनेमें बाधा डालती हैं। इन दोनोंमें लगातार एक संग्राम
होता चला आया है और इसीके कारण हमारी बातों और हमारे
कार्यों में अधूरापन और कचाई रहती है। परन्तु इन दोनों प्रकार-
की कारवाइयोंमें जो असम्बद्धता या विरोध है, वह भी एक
अकारका सुरीलापन या सामंजस्य ही है । जब तक कारय्य-साधन-
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