केशव कौमुदी | Keshav Kaumudi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
380
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)# श्रीगशोशायनमः #
हर ৫
आरामचान्द्रका
| सटीक
( पहिला-प्रकाश )
दो०-यहि पहिले परकाश में मंगल चरण विशेष ।
ग्रन्थ, र भरू आदि শ্রী कथा लहहिं बुध लेख ॥
( गणेश बंदना )
सूल-( दंंडक ) बालक मृणालनि ज्यों तोर डारै सब काल
कठिन कराल त्यों अकाल दीह दुग्च की । विपति हरत हठि पदूमिनी
के पात सम पंक ज्यों पताल पेलि पठवे क्लुख को | दूर कै कलर
छक मव्र-सीम-सपि स्म राखत हैं केशोदास दास के बपुर
को | साँकरे शी साँकरन सनमुख होत तोरै दशमुख मुख আন
गनमुख-मुख को ॥ १॥
शब्दार्थे--वालक >- हाथी का बच्चा । मृणाल --पौनार, मुरार | दीह --
दीघ, बड़ा । पद्मिनि--पुरहन । पर= कीचड़ । कलु =, कलुष, पाप।
अंक = चिष्ठ | भव = महादेव | वपु ( वपुष ) == शरीर । सॉकरे -- संकट ।
साकरन = जंजीग । दशमुन्=दशो ।दशाश्रौ । मुख = मुंह ( यहाँ लक्षणा
से मुख्वले श्रथात् लोग )। मुव (को) जोर्वै > मुख देखते हैं श्रथवा
कूपाकक्षी रहते ह । गजमुख = गणोश ।
भावाथ--जैमे हाथी का बच्चा सब काल में (हर एक दशा में )
कमलनाल को तोड़ डालता है वै1 ही श्रीगणेशनी अ्रकाल के बड़े-बड़े और
कठिन और । कराल ) भयंकर दुःगवों के तोड़ डालते हैं ( श्रौर ) विपत्ति
का, हठ करके. पुरइन के पत्तों के समान ( हरत ) खींचकर तोड़ डालते हैं
श्लौर पाप को कीचड़ की भाँति दबाकर पाताल के भेज देते हैं। ( और )
अपने दास के शरीर से, कलंऋ का चिह्न दूर करके, शिव के मस्तक पर रहने
वाले चन्द्रमा के समान (कलंक रहित और वंदनीय) करके उसकी ( रुदैव )
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