अनुकम्पा विचार भाग १ | Anukampa Vichar Part -i
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
404
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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पात्र जीवां ने बचावियां, पात्र ने दिये दानजी |
¢ ৪ ২
प्रो सावद्य कत्तव्य सं एर नो, भाख्यो ` भगवानूजी ॥
अनुकम्पा ढाल १२ कड़ी १०
संसार रो उपकार किया में, जि म॑ रो हीं अंश लिगार |
# क में ¢ ५५४
संसार तणां उपकार किया में, धर्म हे ते मूढ गवार ॥
अनु० ढाल ११ कडी ३६
तेरहपंथी भाइयों ! आपके मत से सांसारिक कत्तेव्य या
लोकिक उपकार मे धर्म कहने वाला मूढ़ और गँवार ই? হল
यो में घ्म नहीं हुआ तो पुण्य भी नहीं हुआ क्योकि धम के
विना कोरा पुख्य मानते नही है । भावाथं यही निकला कि
लोकिक उपकार करने से पापरूप ही फल हुआ । यही निश्चित
मान्यता है ओर इसी को ये छिपाते है। “ल्ञोकभय से सिद्धान्त
गोपन करना कायरता है। नींव मजबूत है, सिद्धान्त सही है
तब डर किस बात का !” तो क्यो नहीं स्पष्ट कह देते कि लोकधम
के पालन करने का फल पापबन्ध है। आप लोकधम तो कहते हैं
मगर उसका फल क्यो नही बताते। फल बताने मे. लुका-छिपी
क्यो ? भारतीय ऋषि-मुनियो ने पुख्य, पाप चनौर धर्मरूप तीन
फल बताये है । हम इन्हीं तीन मे से उत्तर चाहते है|
` रतल-पान ` न कराना तो आपने पाप बताया है मगर स्तन
पान कराने का फल क्यो नदी बताया ? मक्त पान का विच्छेद
करने से आत्मधम की घात होती है मगर भक्त-पान देने से क्या
फल होता है'? यह क्यो छिपाते है ।
प्रतिहिंसा का नाम लेकर तथा मदिरा, मांस ओर व-सेवन
से सु॒पहुँचाने की बात कहकर रक्षा और सहायता को उड़ाना
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