महादेवी वर्मा और उनका आधुनिक कवि | Mahadevi Varma Aur Unka Aadunik Kavi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
551 KB
कुल पष्ठ :
22
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)- ११५ -
~~~.
ज ~~” ~~.
का एक नवीन लोकनिर्मांस कियादै। मेरी घुंघली छाया से चॉदनी को
पूल के समान शान्ति श्र करुणा वरस रही है | आज प्रलय के भयङ्कर मेघ
भी गलकर शीतल तथा चचल श्रॉसुओं के रूप में बदल गये हैँ। आज भयहर
पे भयङ्कर विपत्तियों भी सरल हो गदै' हैं।
मेरे इस हर्प के क्षण पर सारी प्रकृति भी दर्षोखुल्न है ! श्रज्ञान तया
निराशा की रात बीत गई है श्रीर आनन्द का वैभव सर्वत्र फेल रहा है |
काली दिशाएँ चकित हो गई” और उन्होंने प्रभातकाल में रगीन बादलों
करा सुन्दर वस्त्र पहना | रात ने अपनी नीलम की वीणा पर सुनहली किरणों
के तार सेमाल लिए । प्रभात वेला मे पक्षियों का सगीत गूजने लगता है |
प्ेरे कम्पन से तूफान का भयद्भर गज न मधुर सगीत में बदल गया। जब पथ
में प्रियतम की प्राप्ति हो गई तब निराशा की रातें बीत गई श्रौर उषा का
पुनहला प्रकाश फेल गया है |
पारद सी पहचान वन गया |
शब्दार्थ--पारद-पारा । चन्दन चर्चितनचन्दन के लेप से युक्त | अंगराग
=चन्दन । मधुपकंनयुगन्धि, श्रानन्ट । निमिषन्पलक ।
भावार्थ--कठोर शिलाएँ भी द्रवित होकर पारे के समान हो गई ।
ग्राकाश चन्दन से युक्त आँगन के समान आकर्षक दिखाई देने लगा । पुष्प-
হজ मेरे लिए चन्दन ओर कपूर चन गई | धूप सुगन्धि का ग्रालेप हो गई |
शरीर शूल्ों की पीड़ा मेरे लिए कलियों की सुगन्धि--हृष-के समान हो गई।
श्रानन्द में सारी प्रक्रति ही शीतल, हर्षित तथा स्मणीक दिखाई देने
लगती है |
आज मेरी प्रत्येक सॉस मिलन तथा विरह की सेकड़ों कथाएँ लिख रही
रदी दे । मेरे पलक च्रपने श्रस्तित्व को भिटाकर किन्हीं श्रमजान चरणो की
रेखा बन रहे है, प्रियतम के पद-चिन्ह देख रहे हैं । मैंने जो एक क्षण भर के
लिए तुम्हारा स्वप्न देखा था, वद्द मेरी तथा त॒म्हारी सनातन पहचान
बन गया है |
देते हो प्राण वन गया ।
दब्दार्थ--पाहुन-्रतिथि |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...