अर्चना और आलोक | Archana Aur Alok  

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Book Image : अर्चना और आलोक  - Archana Aur Alok  

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अन्तहप्टि की दीचंत [ ४ हो गए । ऐसे अनेक उदाहरणो से प्रमाणित होता है कि कोई काल या आयु श्रेष्ठ बनने के लिये प्रमाणमृत नही है। कहा भी गया है *-- तस्मास्रमाणं न वयो न कालः, कश्चित्ववचिच्छे ष्ठयमुपेति लोके 1 राज्ञाम्‌ ऋषीणा चरितानि तानि, कृतानि पर्वेरङृतानि पुत्र ॥ ~ बुद्धे चरित कोई किसी काल में श्रेष्ठ वन जाता है और कोई किसी मे । रसलिये आयु ओर काल श्रेष्ठता के लिये प्रमाण नही हँ । राजामो मौर ऋषपियो मे, जिन कार्यो कौ उनके पूर्वज नधे कर सके, उन्हे उनके पुत्रोने करके दिखाया है 1 प्रत्येक मनुष्य क्ये आत्म-णक्ति पर विर्वास रखते हुए दीघं-हृप्टि से आत्मिक गुणो का विकास करने वाले कार्यों को करना चाहिये । अपने विवेक से उन कार्यों से होने वाले परिणामों को काय करने से पूर्व ही समझ लेना आवश्यक है । उचित ओर अनुचित मे भिन्नता वताने वाला स्वविवेकसे चढ़कर और कोई सहायक नही है । शेक्सपियर ने त्तो यहाँ तक कहा है -- [১০৬০ 0प्णा 61 लल्ला ८८ ४ठणाः (पाठ, हप (८ 95(100. {6 1८ ५०0, 116 ए010 {0 11০ ৪০110 अपने विवेक को अपना शिक्षक वनाओ । शब्दों का कर्म से और कर्म का शब्दों से मेल कराओ दीघं दृष्टि पुरष के हृदय में विवेक सदा जागृत रहता है और वह ज्ञान चो सही मागं पर चलाना है । किन्तु इसके विपरीत सकीणं हृष्टि वाले पुरुष के हृदय मे विवेक मुप्नावस्था मे रहता है ओर वह्‌ अपने जान का सह उपयोग नही कर पाता । ससार कै पदार्थो का उपभोग दोनो हो करते है, किन्तु ज्ञानी व्यक्ति वास्तविकता को और अज्ञानी अवास्तविकता को देखता है । उदाहरण स्वरूप कही रामलीला होती है मौर उसे देखने वाले दको मे दोनो ही प्रकार के व्यक्ति होते है । सकुचित रप्टि वाला अज्ञानी पुरुप अभिनय को ही वास्त- विक मानता है भौर केवट-प्रसगः जसे अवसर पर राम का अभिनय करने चाले पुरुष का चरणोदक पने मस्तक पर लगाकर या उसका आचमन करके अपने को धन्य मानता है 1 इसके विपरीत बिवेकपूर्ण दीघं-हष्टि रखने वाला ज्ञानी व्यक्ति राम के अ>्निय को दिखावा मानता ह । क्षणिक मनोरजन के 5 लावा वह राम वा रूप घारण करने वाले उस व्यक्ति के दर्घान का अथवा




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