व्यक्तित्व और कृतित्व | Vekatitav Aur Kartiv

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Vekatitav Aur Kartiv by आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सर्वतोमुयो ध्यक्तित्व € वात-चीत मे नवनीत से भी अधिक मृदु, कुयुमने भी श्रधिक कोमल ! त्क मे एव विचारःचर्चामे कुनिजादपि अधिक कठोर, चट्टान से भी अधिक सुहृद । व्यवहार में चतुर, परन्तु अपने विचार में अचल, अकम्प और अडोल । जीवन के सुषमामय अरुणोदय मे गीतकार, जीवन के सुरभित वसन्त में कोमलकवि, जीवन के तप्यमान मध्य में दार्शनिक, विचारक समाज-सघटक और जागरण-णील जन-चेतना के लोक-दप्रिय अधिनेता । जो एक होकर भी सम्पूर्ण समाज है, और जो समाज का होकर भी अपने विचारों की सृद्टि मे सर्वथा स्वतत्र है। जो व्यद्ि में समद्ि है और सम्ठि मे व्यत्ि है। जो एकता में अनेक्ता की साधना है, और जो अनेकता मे एकता की भावना है । जन-चेतना के सस्मृति-पट पर जो सदा रपष्ट, निर्भय निद्रनद्र होकर आए। प्रसुप्त जन-चेतना को प्रवुद्ध करने वालो मे जो सब से अधिक लोकप्रिय है, सव से अधिक सजग है। _ पमाज-सघटन के सूजवार, सयोजक ओर व्याख्याकार होकर भी जो अपनी सहज विनय-विनम्न वृत्ति से वृद्धानुयायी रहे है। जो अपने से वडो का विनय करते हैं, साथी जनो का समादर करते है, मरोर छोटो से सदा स्नेह करते है । ट, सद्भाव, सहानुश्रुति, सहयोग श्रौर समत्व-योग के जो अ्रमर साधक हूं। अमर, अमर है। वह अपने जेसा आप है। शब्द-चित्र लम्बा और भरायूरा शरीर। कान्तिमय श्याम वर्ण । मधुर मृन्कान-नोभिन मुख । विदान भाल । चौडा वक्ष स्थल ! प्रलम्ब वाहु । निर पर विरल और घवल केश-राशि। उपनेत्र मे से चमकते-दमकरो तेजोमय नेतर, जो समुखस्थ व्यक्ति के मनस्थ भावोको पर्ने ग पनम प्रवीण । सफेद खादी से समाच्छादित यह्‌ प्रभावा ५॥‹ जाद्‌ भरा वाह॒री व्यक्तित्व, ग्रान्तरिक विणुद्ध व्यक्तिः ५1 41 चरिते अनुमान है 1 सादा जीवन, उच्च विचार । २




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