भारतीय इतिहास के अध्ययन की आधुनिक प्रवर्तिया | bhartiya ithas ke adhayan ki adhunik pravartiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क/भारत प्रत्येक जाति एवं उपजात्ति ने अपने धंधों मों विद्येप निपणता प्राप्त कर .दस्तकारी को यथासंभव चरम सीमा तक पहुंचा दिया। उत्पादन शक्ति मं वृद्धि होने सं शासक वगो- एवं राजसत्ता दुवारा लिये जाने वाल कर एवं अतिरक्त उत्पादन की मात्रा मे वृद्ध हुई। इसी आतिरिक्‍्त उत्पादन कौ सहायता से सिंचाई कं साधनी, सावंजांनकं तालावो तथा उन स्मारक वास्त कला की कृतियों का पोषण हुआ जिन्हें हम आज भी देखते है। सम्पन्न संस्कृत, गुप्तकालीन साहित्य एवं कला के सुन्दर रूप, सिंचाई के विशाल सधन (कर्मौर म एक जलाशय का निर्माण एक अद्भूत जाति के इंजीनियर ने किया খা) तथा मध्यकालीन व्यापार व उदुयोग-- सभी ग्रामीणः समाज की विकसित उत्पादन शक्तियो यानी उसकी कयि ओर दस्तकारी की, जिसने मध्यकालीन राजनगर को विदोप रूप না प्रभावित किया था, सफलताए- थीः 1 इसके साथ-साथ कार्ल मार्क्स ने इन समाजो कं उन प्रगति-यिरोधी रूपो का भी उल्लेख किया है जिनके कारण समाज कं इतिहास प्रवाह जडता आ गयी थी। दतिहास कं विद्याथी मार्क्स के उन জহী- को ` भली भांति जानते हैः। इसलिए उन्दः दोहराना अनावइ्यक है। उन ग्रामीण समाजो अथवा भारतीय सामन्ती सम्बधोः मः निहित वर्ग- संघर्षो के विकासे का ज्ञान प्राप्त करने का तरीका इतिहास कं विद्याथीः अवद्य जानना चाहेंगे। कार्ल मार्क्स ने ग्रामीण समाजो का जो वर्णन किया है, उसके आधार पर कुछ लोग यह कहना चाहते हैं कि ये समाज अपने मे पूर्णं थे भौर इनका निर्माण इस रूप में किया गया था जिसमें वर्ग-नवरोध अथवा वर्ग-संघर्षं नहीं थे) अपने भारते सम्बंधी लेखोः मः जिस समय कार्ल मार्क्स ग्रामीण समाज का अध्ययन कर रहें थे, उस्र समय उनका मुख्य प्रयोजन यह स्पष्ट करना था कि अंग्रेजों की विजय ল भारत म कान-सी नयी उत्पादन शक्तियो तथा क्रान्ति के तत्वों का .वीजारोपण विया था। जिस समय कार्ल मार्क्स ने उनका उल्लंख पूजी मः दोवारा किया, उस समय वे उस श्रम विभाजन कै प्रदन पर विचार कर रहे थे, जो पूजीवादी उत्पादन के द्वारा फैक्टीरयोः मेः संभव हा था। यह्‌ शरन विभाजन उस ग्रामीण समाजे के श्रम विभाजन से শিল था जिनका आर्थिक ढांचा अपने में पूर्ण था। ये ग्रामीण समाज सैकड़ों वर्षो सो उसे आा रहे थो और (पंजीवादी समाज की अपेक्षा) राजशाक्तियों' के परिवर्तनों के प्रति अधिक निरपेक्ष रहे थे। इन दौनोः स्थानो पर कार्ल मार्क्स ने भारतीय सामन्तवाद के ढांचे के विय मो गंभीर समभ प्रदान की है। लोकन इन दोनों न्थानोः पर उना प्रयोजन खा तौ उसके एक पक्ष कौ दिखाना था, या दसरे (श्रम च्ञ्य) पक्ष को -स्पष्ट करना था उस समय उनका उद्देदशण इस विएय क्म सर्वागीण ओर विशद व्यास्या करना नही था। गदि वरह भारत की शीतदास




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