हिंदुस्तानी ( हिंदुस्तानी एकेडेमी की तिमाही पत्रिका ) | Hindustani (hindustani Academy Ki Timahi Patrika )
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
566
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शय हिंदुस्तानी
सिद्धात या सामजस्य का सिद्धात जिस क अस्तार ऊंचाई जोर नीचाई ४ पत्म गम
सामजस्य स्थापित है ।
जाँच करने से पता चला हूँ कि पृथ्वी पर पारी का पीमाण बढ़ला আলা है।
यह पानी तरल चद्टानों में से निक्षकता हैं और ज्यालासखी पर्तों हारा देव पर जाग
है। यदि समस्त अल पृथ्वी पर বরা दिया जाते तो त्म् का
(३) समुद्र की गहराई আদল गहराई दो मील से अधिक ने होगी। पे अएड है कि
ओर परिमाण का वि ৫
धरिवतेत जिस मठल का धुण आट हजार मीने उ दरदो मोह
पानी एक पतली झिल्ली से अधिक नहः ष ता चन्म ।
परतु यह जल पृथ्वी पर समान रूप रो फैठा हुआ नहीं है, जार बार दुव এটা জাত
इयो में, जिन्हे हम समुद्र कहते हे, एकत्र है। इन समृद्रो की गहशाय पतली की गाँव के
साथ-साथ घटती-वढ्ती रहती है । आरभ में तो गहराइया गि ठाफ की डुडन्कट से उनम
हुई परतु पृथ्वी एक मडल हैं जो अपनी धुरी के चारो ओर घूमती ह उस दिए उस गति
का उस के आकार पर प्रभाव पडता है। आरभ में गति की माजा अधिक थी, इस दिए
भूमध्यरेखा पर पृथ्वी उभरी हुई थी। ज्यो-ज्यों गति धीमी द्ोती गई उभार कभ होला
गया जिस का परिणास यह हुआ कि पाती भूमध्य भागों से बह कर ध्रवन्प्रदेगा में चला
गया और समुद्र की गहराई और पानी के परिमाण में अतर उत्पन्न हो गण ।
यहाँ तक पृथ्वी के इतिहास के टौ अध्याय वणित हण 1 पटला चध्पराय पुषा क
सूर्य से पृथक होने से आरंभ होता है। दूसरा वायु और जलमइल के निर्माण पर समाप्य
हुवा और जछू का. होता है। यहाँ मे तीसरा अध्याय चलता है। जब গীত নাল
पृथ्वी पर प्रभाव पृथ्वी के तल पर नए प्रकार के परिवर्तन उत्पन्न करते हे जा
पृथ्वी को मनुष्यों के रहने योग्य बनाते हे। पुथ्वीमडक जो प्रत्येक द्रव् वी भाँति परिवर्लन-
लील हं तीन प्रघ शक्लियो के प्रभावे से बदलता रहता है । प्रधम साप का कमामन् हयम
है जो पृथ्वीमडल के आकार को कम करता हैं और सतह के गिछाफ मे ऊर्णा गति उत्पन्न
करता हैँ जिस का परिणाम पहाडो और समुद्रो की ऊँचाई और गहराई में विन শীলা
हैं । दूसरे ज्वालामुखी क्रिया है जिय का गहरा राबध पहली शबित से हैं ओर जिस के कारण
भूकप जाते है। भीतरी तरल पदार्थ भाप को ऊपर लाता है और पृथ्वीवल की वायु और जल
की चादरों से ढॉक देता है। तीसरी क्रिया जल और वास की गति से संबंध रुपती है।
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