राष्ट्रभाषा पर विचार | Rashtra Bhasha Par Vichar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
346
श्रेणी :
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No Information available about आचार्य श्री चन्द्रबली पांडेय - Acharya Shri Chandrbali Pandeya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ राष्ट्रभाषा पर विचार
चलित रूप को राष्ट्रभाषा के योग्य समभता है। जो হী, লাহন
राष्ट्रभाषा संस्कृत को छोड़कर जी नहीं सकता। प्राण-रहित
शरीर ओर वारि-रहित नदी की जो स्थिति हे वही संस्कृत-रहित
भारत की अवस्था हे। हाँ, जिनकी दृष्टि मेँ इंडिया के पहले कोर
“इंडिया? अथवा “हिंदुस्तान! के पहले कोई 'हिंदुस्तान' ही नहीं था
वे कु भी वक्ते रहः हस उनकी तनिक भी चिन्ता नहीं करते
पर हम तड़प उठते हैं यह देखकर कि हमारे संस्कृतामिमानी
विश्वविद्यात्यय में छात्रों को पढ़ाया जाता है--“जब समस्त भारत
की राष्ट्रभापा संस्कृत थी, उाच समय उसका नाम 'भारती' था।
यह भारत की भाषा! या उसकी अंतरात्मा 'सररवती? थी। बह
भाषा अपने वाड्सय या 'सरस्वती' को वहन या धारण करने
का इतनी ग्रकाम क्षमता रखती थी कि उपासकों ने भाषा और
भाव--शरीर ओर आत्मा-दोनों की एकता मानकर. विमग्रह में
ही देवता की प्रतिष्ठा कर ली ।” ( धाद्यमारती” की भूमिका का
“रामः ) । इस प्रकार के वागजाल के द्वारा चाहे संस्कृत शब्दों की
जितनी भेंढ़ेती की जाय पर इसका सीधा अथ यही निकलता हे
कि संस्कृत भूत की बात हो गईं। अब न तो बह भारत की
भारती रही और न उसकी अंतरात्मा 'सरस्वती। तो क्या हिंदू
संसृति करा उद्धार ओर मारत का अभ्युदय इसी श्यी से होगा ९
क्या माषाशास्रका सारा सार इसी “थी' में छिपा हे ९
नदी, अव इसका भरपूर विरोध होना चाहिए और अपने
होनहार विद्यार्थियों को इस प्रकार के कपाट से सर्वथा बचाना
चाहिए । सच पूछिए तो हमारे राष्ट्र का विनाश जितना कुपढ़
हाथों से हो रहा है उतना अपढ लोगां से नहों। भारत की भाषा
आज भी भारती ही है--संस्कृत न सही भाषा तो है। भला कौन
कह सकता है कि तुलसी के रहते रहते भाषाः तो रह गई पर
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