हिंदी भाषा और साहित्य पर अंग्रजी प्रभाव | Hindi Bhasha Aur Sahitya Par Angreji Prabhav

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Hindi Bhasha Aur Sahitya Par Angreji Prabhav by डॉ. विश्वनाथ मिश्र - Dr. Vishwanath Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ह्घ हिन्दी भाषा श्रौर साहित्य पर श्र'ग्रेजी प्रभाव परिवतंन भ्र ग्रेजी छासन के युग मे ही हुझा है, इसलिये यह तो निष्चित-सा प्रतीत होता है कि श्र ग्रे जी प्रभाव ने उसमे सक्रिय योग दिया हो, नही तो इतना व्यापक विकास सम्भव ही न हो पाता । इस झष्ययन में इसी प्रभाव के सूल्याकन को प्रयास किया जा रहा है । किसी भी देवा के भाषा एव साहित्य के विकास-फ्रम का श्रनुशीलन किया जाये तो उनकी प्रगति मे योग देने वाले तीन प्रधान स्रोत मिलते है--उसकी शझ्रपनी भाषा- गत एव साहित्यिक परम्पराए, नवीन प्रभाव श्रौर युग-विशषेष की श्रनुभुतिया । हिन्दी भाषा श्रौर साहित्य की झाघुनिक प्रगत्ति मे भी, इन सभी स्रोतों का योग रहा है। इस काल के प्रारम्भ मे हम, श्रपने देश के प्राचीन साहित्य एवं भाषा के प्रति, श्रनुराग का पुनर्जागरण देखते हैं । नवीन प्रभाव, श्र ग्रेजी भाषा एव साहित्य के सम्पर्क के रूप में, नवस्फूतति एव नव चेतना का. सचार करता रहा है । युग की नयी भ्रमुभूति, भप्रेजी राज्य के ऊपर के सुख शाति के वातावरण मे, भीतर ही भीतर, घन-घान्य सम्पन्न देश का भाथिक णोपण, रददी है, जिसने हिन्दी ही नहीं समस्त भारतीय साहित्य में बड़ी प्रवल “विद्रोह की भावना का 'सचार किया है। हिन्दी भाषा तथा साहित्य को गति प्रदान करने वाले इन तीनो ही स्रोतो के मूल मे अर पूरेजी प्रभाव विशेष रूप से समय दृप्टिगत होता है । श्राघुनिक काल मे, देश के प्राचीन साहित्य भौर सस्कृति के प्रति श्रनुराग का जो पुनर्जागरण हुआ है; उसके सून में भी श्रगूरेजी प्रभाव है । पष्चिम में पुनरुत्यान को भावना का सुभ्रपात चुर्को द्वारा छुस्तुनतुनिया की विजय (१४५३) के झ्नन्तर दुध्ना था : जब युनान के प्राचोन साहित्यिक सौर वैज्ञानिक ग्रन्य दारणाधियों के साथ समस्त योरप में फेल गए थे भोर उनका श्रध्ययन-श्रनुघीलन प्रारम्भ हुमा था । हमारे देश में भी श्रग्रेजो की यिजय भौर राज्य-स्थापन के भनन्तर ही, प्राचीन भाषा श्रौर साहित्य के श्रष्ययन के कल जद की ; घौर इस क्षेत्र मे कुछ उदारमना पाइचात्य विद्वानों ने ही - कार्यारम कया था । उस प्रमग मे में पिन्ट प्रिय्सन के नाम गदा मम ीय सगे 1 बन थम बन तर रियल, फियसन झादि बना लयम जोन्म ने बंगाल की एधशियाटिए सोसायटी वी स्थापना बरके, तथा कनन मनिधम ने सन्‌ १८४५७ में पुरातय विभाग को व्यवस्था द्वारा, नव दिलित भारतीयों के गन में शपने ददा को प्राघीन पता भोर साहित्य के प्रति रुचि जगाए थी । शाधुनि हिन्दी मापा भर सा; इृत्य की प्रेरण ( सका क भा दी का का दूसरा स्रोत, नया प्रभाव, व ं! । भाषा शोर साहित्य का ध्रष्ययन तपा दी मे माध्यम से, धय यरोपीय देशों के माहित्य से परिनय, श्राघुनिक युग ने




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