अरधानासर कथा कोष | Aradhana Sar Kata Kosh

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Aradhana Sar Kata Kosh  2435 by लाला मोतीलाल जैन -Lal Motilal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हि जकर्लक देव की कथा हुनछ- 1... दि कितने दिन बीते सुख लीन । फिर मंत्री उद्यम यह कीन॥ . ! सुत विवाह करनेा चितधार । आरम्भ कीनों विविध प्रकार ॥८0 इम लखकर दोनों सुत एह । बाले इम बच सुन्दर देह ॥ _ झहा तात इह झाराभ सबे । किस कारन तुम कीनो अब ॥£॥ ऐसे बच सुन बोले तात । तुम विवाह करना अब दात ॥ फिर दोनो भाषे गुणवान। इस विवाहकर कया बुघवान ॥१०) तुमने ता श्रीगुरु ढिंग कही । ब्रह्मचय घारो सुत सही ॥ तब हम घारो शील महान । तुम संदेह न चित में झान ॥१९॥ दोहा ऐसे बच सुन सुतन के, बोले तब इन तात 1 क्रीड़ा करके शील की» माषीथी में बात ॥ १९ ॥. , फिर दोनों यह चतुर अति: बोले मधुरी बान । न घर्म काजमें तातजी, कीड़ा केसी जान ॥ १९३ ॥ ं सयौपाई । तब मंत्री बोलो इम बान । अहो पुत्र तुमहे! बुधिवान । _ में जो बूत दिलवाया सार । झष्ट दिननके नेम विचार ॥ १४ ॥। . फिर दोनो बोले इम चइ । हमसे तुममरज़ाद नकही । . तुमने अरु श्रीगुरुन जोय। बृत दीनो हम पाले साय ॥ १५ ॥ इस भवमें विवाहकों नेम । शील बृत्त पाले घरप्रेम । ऐसो कह ग्रह कार ज त्याग । बौद्ध शास्त्र पढ़ियो बड़माग ॥ र६ ॥ मान्याखेट नगरमें सोय । बौद्ध तनो पाडित नहि कोय । तब विद्या जाननको संत । मूरखसिखवे चले तुरंत ॥ १७ ॥ चलत चलत यह पहुंच तहां । चोद्ध मतनके मठ जहां । | बंधक गुरु तहैँ है परधान । धमाचारज नाम कहान ॥ १८ ॥ . । ताढिग तिष्टे यह जुग जाय । बोद्ध मार्ग जानन चित चाय । 1 प | || कक टिक जे + फुकरनणा बयनिपलन न प कयदकपदरय सययनणनपनन्मय




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