जीवन्मुक्ति | Jeevnmukti

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Jeevnmukti by बाबू चेतनदास - Babu Chetandasलाला मोतीलाल जैन -Lala Motilal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रतिहंदिता के नियम ओर: पैेम-का नियमें ।' छिपा रहेतां है 'इसी प्रकार कार्य ओर उसके कारण का संवध ऐसा झविनाभावी है कि हम इन टोनों फ्रो एक दूसरे से अलग नहीं कर सकते | कार्य मे निज्ञी शक्ति कुछ नहीं होती | कारण में जो शक्ति होती है उसी से कार्य में भी संचालन-शक्ति आा जातीहे! यदि हम अपनी दृष्टि फेला कर संसार कफो देख तो दम को वह पक रणक्षेत्र के समान सालूम होगा जिसमे महुप्य, जातियों श्रौर देशा प्रतिष्ठा और धन के ऊपर एक, दुखरे-सखे निरंतर लड़ा करते है, हम यह भी देखेगे कि निर्यल मयुग्य हारते ह श्रौ सवल मनुष्य ( जिनके पास निरतर युद्ध करने की सामझो है ) विजय पाते हैं झोर संसार के पदार्था' पर अपना अधिकार जमा लेते हैं । हस युद्ध के लाथ दम अनेक दुःख मी देखगे, क्योकि युद्ध से दु.खों की उत्पत्ति श्रचश्य होती है । दम देखेंगे कि पुरुष ओर ভিআর उत्तरदायित्व के बोक के नीचे देव कर अपनी चेष्टाओं में विफल मनोरथ होते है ओर सच कुछ खो ' बैठते है, कुडुम्ब ओर जात्तियो मे फट पड़ जाती है और उनके विभाग हो जाते है ओर देश श्पनी स्वतन्नता खो कर दूसरो की शुलामी करते हैं । आँखुओ की नदियाँ वह कर घोर दुख घोर शोक की कथा छुनाती है । प्रेमी एक दुसरे से बड़े दुःख के साथ हुदा होते द ओर वदत से मनुष्य श्रकाल तथा अस्वा- भाविक. स्यु के प्रास वनते ह,, यटि हम युद्ध कौ ऊपरी वातो कौ छोड कर उसकी आन्तरिक गति पर दृष्टि पात करें, तो दम को वहुत करके शोक ही शोक दिखाई देगा 1 मनुष्य जब परेस्पर ' स्पर्धा करते हैं तव ऐसी ही अनेक श्र




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