राष्ट्रीय-सन्देश | Raashtriiya Sandesh

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Book Image : राष्ट्रीय-सन्देश  - Raashtriiya Sandesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ভ্বলি । ३-स्खति “ অন याद आ रहा है, गुजरा इवा जमाना ' १ जव भारतीय रवि था उन्नत सखे ! गगनमे, प्रतिभा चमक रही थी जव चौदह मुवनमें | तन्मय थे देङ-वासी उत्थानकी ख्गनमे, आर्स्य-दासताका था छेश भी न तनम | जिनका सुयश हृदयसे संसारने बखाना- -वह्‌ याद्‌ आ रहा है, गुजरा इवा जमाना ॥ [२] भारतकी कीर्ति-ज्योत्स्ना जगबीच छा रही थी, विद्या-कछा-कुशलता, गौरव दिखा रही थी । पाइचात्यवासियोंकों मानव बना रही थी, सोये हुओंको- उद्रो कहकर जगा रही थी | संसारने हृदयसे गुरुदेव ! था बखाना- -वह याद्‌ आ रहा है गुरा इञा जमाना ॥ [ই श्रीराम-ङष्णकी थी यह जन्म भूमि प्यारी, सोपान स्वर्ग॑की थी, भारत मही हमारी, राणा प्रताप सम थे प्रिय पुत्र इस महीके, रिवराज वीर सांगा, परथिराज थे यहींके | धिवर धिक्‌ हा | हमने उनके आदरको न आना- -अव याद्‌ आरहा है गुजरा इभा जमाना ॥




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