साहित्य-प्रभाकर (पहला भाग ) | Saahitya Prabhaakar Pehlaa Bhaag

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Saahitya Prabhaakar Pehlaa Bhaag by महालचंद वयेद - Mahalachand Vayed

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[2 भ ( १ টি গং [नि পানে মি ६ ১ 1 এ ५ রী ৯ (श ४ मि |, রে 1 £ ध ष ) एक ही स्थान पर अनेक खुकवियों की और साथ ही विभिन्न ' विषयों की भी चुनी हुई रस-मयी सूक्तियाँ पढ़ने को मिल जायेँ काव्य-संग्रह की इसीलिये काव्य-संग्रहों की आवश्यकता होती है। आवश्यकता. खेकड़ों खुकवियों के सूल-प्रन्थ क्रय करके पढ़ना प्रत्येक व्यक्ति के लिये असम्भव नहीं, तो कठिन अवश्य हैं | प्रत्येक पुस्तकालय या सभा में सेकड़ों कवियों के सब काव्य-प्रन्थ मिल सके यह भी सहज बात नहीं है। ऐसी अवस्था में, सैकड़ों कवि- कोविदों की चुनी हुई सर्वोत्कृष्ट रचनाओं के रसास्वाद्‌ का सुगम साधन, काव्य-संग्रहों को छोड़, दूखघरा हो ही क्या सकता है। उत्तमोत्तम अप्रकाशित रचनाएँ भी संग्रह-श्रन्थों ही में मिलती हैं । हर तरह की रुचिवालों के लिये जेसी चुनी हुई सरस कविताएँ काव्य-संग्रहों में मिल सकती हैं वेसी उत्कृष्ट सूक्तियाँ अन्यत्र नहीं मिल सकतीं। “भिन्नरचिहि छोकः ” को ही ध्यान में रखकर विभिन्न विषयों की चित्ताकषेक कविताओं का संग्रह काव्य- संग्रहों में किया जाता है। जेसे रल्न-राजि में से पारखी दिव्य-रल ओर बहुमूल्य मणि्यां चुन-चुनकर निकार ठेते दहै, वैसे ही




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