इसीभासियाइ सुत्ताइ | Isibhasiyaim Suttaim
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
434
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about महोपाध्याय विनयसागर - Mahopadhyay Vinaysagar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऋविभावित : एक अध्ययन
[] ओ० सागरमल जैन
जेन श्रागस साहित्य में ऋषिभाषित का स्थान-
ऋषिभाषित- (इसिभासियाईं) श्रघंमागघी जैन आगम साहित्य का एक
प्राचीनतम ग्रन्थ है । वर्तमान में जेन आगमों के वर्गीकरण की जो पद्धति प्रचलित
है,- उसमें इसे प्रकीर्णक ग्रन्थों के अ्रन्तगंत वर्गीकृत किया जाता है । दिगम्बर परम्परा
में १२ अंग और १४ अ्रंगबाह्य माने गये हैँ किन्तु उनमें ऋषिभाषित का उल्लेख
नहीं. है । श्वेताम्बर जैन परम्परा मे स्थानकवासी भ्रौर तेरापंथी, जो ३३२ आगम
मानते हैं, उनमें भी ऋषिभाषित का उल्लेख नहीं है । श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा
में ११ अंग, १२ उपांग, ६ छेदसूत्र, ४ मूलसूत्र, २ चुलिकासूत्र और १० प्रकीर्णक,
ऐसे जो ४५ आगम माने जाते हैं, उनमें भी १० प्रकीर्णकों में हमें कहीं ऋषिभाषित
का नाम नहीं मिलता । यद्यपि नन््दीसूत्र और पकक््खीसूत्र में जो कालिक सूत्रों की
गणना की गयी है उनमें ऋषिभाषित का उल्लेख है? । आचाये उमास्वाति ने
तत्वार्थभाष्य में अंग-बाह्य ग्रन्थों की जो सूची दी है उसमें सर्वप्रथम सामायिक आदि
६ ग्रन्थों का उल्लेख है और उसके परचात् दशवेकालिक, उत्तराष्ययन, दशा
१. (श्र) से कि कालियं ? कालियं अ्रणेगविहं पण्णत्त ।
त॑ जहा उत्तरज्कयणाइं १, दसाओ्रो २, कप्पो ३, ववहारो ४, निसीहं ५,
महानिसीह ६, इसिभासियाईं ७, जंबुद्दीवपण्णतती ८, दीवसागरपण्णत्ती ।
“+नन्दिसूत्र पढे ।
-- (महावीर विद्यालय, बम्बई १६६८)
(व) नमो तेसि खमासमणाणं जेहि इमं वाश्रं मंगवाहिरं कालिग्रं भगवतं ।
तं जहा--
१. उत्तरज्छयणादईं, २. दसाभ्रो, ३. कप्पो, ४. ववहारो,
५. इसिभासिश्राईं, ६. निसीहं ७. महानिसीहूं......«« 1
(ज्ञातव्य है कि पक्लियसुत्त में अंग-बाह्य ग्रन्थों की सूची में २८ उत्कालिक और
३६ कालिक कुल ६४ ग्रन्थों के नाम ह । इनमें ६ श्रावश्यक भ्रौर १२ भ्रंग মিলান
से कुल ८२ की संख्या होती है, लगभग यह सूची विधिमागगेग्रपा में भी उपलब्ध
রি --परक्खियसुत्त (प० ७६)
(देवचन्द लालभाई पुस्तकोद्धार फण्ड़ सीरिज क्रमांक ६६)
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