साधनसंग्रह - दूसरा खंड | Sadhansangrah - Dusra Khand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दासभाव ३८६
ओऔमगवान के निर्मल यश को सुनकर मेरे अन्तःकरण में रज्ञोगुणी
समीर तमोगुणी कुत्लिन ब्रक्तियोंका नाश करने वाढी भक्ति उत्पन्न
हुई ।
सव साधनाभमि श्रीउपास्यद्रेवदो सेवा ही सुख्य है, अन्य सच
कुछइलके अन्तर्गत हैं भोर इसके चिना अन्य सव कमं यथार्थं
श्ट्ेइय को पूरा कर नहीं सकते | इस सेचा-घर्से सब प्राणि-
योकाबहुत बड़ा उपकार होना हैं. ऋतएव संसारके कल्याण कै
निनित्त ही श्री उपास्यदेव सेवा-धर्म ( शुद्ध भाव से किया
ভুলা) ক चरते हैः- রর
श्रीमदुसागवत पुराणका बचने हैः-
तज्जन्म तानि' कर्माण तदायुस्तन्मनो वचः।
नुणां येनेह विश्वात्मा सेव्यते हरि रीश्वरः । ६ ।
किंजन्ममिखिभिरवेह शौकलसाध्रैचयाक्ेकैः ।
कमैभिवी व्रयीपोक्तैः पुसो पि बिवुधायुपा । १० ॥
श्रुतेन तपरा वा करि वचोभिरिचत्तद्रन्तिभिः ।
,बुदध्या का किं निपुणया व्ेनेद्रियराधसा । ११।
किंवा योगेन सांख्येन न्धास्तस्वाध्याययोरपि ।
किंवा श्रेयोभिरन्यैश्च न यत्रात्मप्रद। हरिः । १२।
श्रेयसामपि समैषामात्मा हवधिरर्थतः ।
सर्वैषामपिभृतानां हरिरात्मात्मदः भियः ॥ १३।
यथा तरोरंलनिषेचनेन तप्यन्ति तत्स्कन्धञ्चुजोप
शाखाः । माणोपहाराच्च यथेन्दियाशां तथेव
सवाहण मच्युतेज्या ॥ १४ ॥
( सक० ४ अ० ३१ )
अओनारदजी ने कहा-हे राजाओं - इस खंखारमें जिसके द्वारा
पिश्वव्यापी श्षीसगवानकी सेवा हं।ती है वही जन्म, वही मन, वही
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