शुक्ल जैन रामायण | Shukl Jain Ramayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
570
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ष्टम त्रिक महापुरुप चरित्र ६
घीस्ज घरके उपाय #हो सो करू,
क्योंकि मेरी अकक््ल काम आती नहीं ॥र२॥।
आज असह्ाय कप्ट है छाया भुमे,
में कहूँ क्या अकक््ल मेरी मारी गई
दुइई छाड़ अकेली वियावान में.
श्रवला इतनी न मु से विचारी गई ॥३॥
जिस पुरुष ने दिया धोखा सिदनाद का,
बस उसी कर से है सिया नारी गई ।
केसे दनिया में अपना दिखाऊंगा সু,
एकर शरीरत न मुक से संभारी गई ॥४॥
[लक्रण)--तुमको श्रध तक्र पता ना द श्रफसोस ये,
जीते लक्ष्मण को दनिया में नर हो नहीं ।
फिरते लाखों दनुज इस वियावान मे,
जीती हूँ या कि मुरदा खबर ही नहीं ॥५॥
माता पूछेगी मुझको कहां है सिया,
क्या वताऊंगा दिल को सचर ही नहीं ।
मेरे होते हो ऐसी तुम्दारी दशा,
मुमसा पापी भो कोई चशर ही नहीं ॥६
[रम ]--जव से भाद सुना शच्द तिंढनाद का,
तब वह नेनों से आंसू बहाने लगी ।
श्राज श्र की सेना ने वेरा लखन
जावो जावो ये हरदम सुनाने लगी 1७)
मेनि समाई लेकिन वह मानी नहीं
उलटे ताने फिर मकको लगाने लगी ।
तुम दो लक्ष्मण के विश्वास घातो জল,
में चला जब वह आखिर सताने लगी ॥८॥
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