शुक्ल जैन रामायण | Shukl Jain Ramayan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shukl Jain Ramayan by श्री शुक्लचन्द्र जी महाराज - Shree Shuklchandra Ji Maharaj

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री शुक्लचन्द्र जी महाराज - Shree Shuklchandra Ji Maharaj

Add Infomation AboutShree Shuklchandra Ji Maharaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ष्टम त्रिक महापुरुप चरित्र ६ घीस्ज घरके उपाय #हो सो करू, क्योंकि मेरी अकक्‍्ल काम आती नहीं ॥र२॥। आज असह्ाय कप्ट है छाया भुमे, में कहूँ क्या अकक्‍्ल मेरी मारी गई दुइई छाड़ अकेली वियावान में. श्रवला इतनी न मु से विचारी गई ॥३॥ जिस पुरुष ने दिया धोखा सिदनाद का, बस उसी कर से है सिया नारी गई । केसे दनिया में अपना दिखाऊंगा সু, एकर शरीरत न मुक से संभारी गई ॥४॥ [लक्रण)--तुमको श्रध तक्र पता ना द श्रफसोस ये, जीते लक्ष्मण को दनिया में नर हो नहीं । फिरते लाखों दनुज इस वियावान मे, जीती हूँ या कि मुरदा खबर ही नहीं ॥५॥ माता पूछेगी मुझको कहां है सिया, क्या वताऊंगा दिल को सचर ही नहीं । मेरे होते हो ऐसी तुम्दारी दशा, मुमसा पापी भो कोई चशर ही नहीं ॥६ [रम ]--जव से भाद सुना शच्द तिंढनाद का, तब वह नेनों से आंसू बहाने लगी । श्राज श्र की सेना ने वेरा लखन जावो जावो ये हरदम सुनाने लगी 1७) मेनि समाई लेकिन वह मानी नहीं उलटे ताने फिर मकको लगाने लगी । तुम दो लक्ष्मण के विश्वास घातो জল, में चला जब वह आखिर सताने लगी ॥८॥




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now