हरिवंश पुराण का सांस्कृतिक विवेचन | Harivansh Puran Ka Sanskritik Vivechan

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Harivansh Puran Ka Sanskritik Vivechan by वीणापाणि पाण्डे - Veenapani Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्‌ हरिवंज्ञ पुराण का सांस्कृतिक विवेचन के अश्वमेघ यज्ञ से भारती वथा के साथ पुन हरिवश के वृत्तान्त का प्रारम्म हौता है।' हरिवश में मिलनेवाले ये प्रमाण महाभारत से हरिवश्च के सम्बन्ध की पुष्टि करते है। वृत्तान्तो ओर प्रसंगो का प्रमाण महाभारत तथा ट्रिवदय में परस्पर सम्बन्ध को स्थापित करनेवाले इन प्रस्थों के आन्तरिक प्रमाण ही हरिवश को महाभारत का खिल सूचित नहीं करते । विविध वृत्तान्तो ओौर पौराणिक प्रसगो कौ दृष्टि से भी महाभारत तया हरिवश में परस्पर सम्बन्ध दिखलाई देता है। महाभारत में वर्णित कुछ वृत्तान्त हरिव मे सम्भवत पुनरावृत्ति के भय से जानबूझकर छोड दिये गये है। महाभारत में द्वारकावासी यादवी के विनाश का विस्तृत विवरण मौसलपर्व में मिलता है।' हरिवश में कृष्णचरित्र को प्रघानता देने पर भी द्वारका के विनाश से सम्बद्ध यह वृत्तान्त उपेक्षित है। द्वारका के विनाश के प्रसण की ओर विष्णुपर्व के १०२ वें अध्याय में सकेत मात्र हुआ है। यहाँ पर द्वारका के विनाश की घटना भावी रूप में वणित की गयी है।' द्वारका नगरी में विनाश का यह्‌ पूर्वकथन महाभारत वनपव॑ में अक्षरश इसी रूप में मिलता है।' द्वारका के विनाश के वृत्तान्त को भावी घटना के रूप में लिखने के कारण वनपर्व का यह प्रसंग मौसलपवे से पूवंकालीन ज्ञात होता है! सम्भवत ললঘদ में भावी घटना के रूप में केवल सकेत करने के उपरान्त मौसलपवें में इसी घटना का विशद वर्णन हुआ है। द्वारका के वृत्तान्त की आवृत्ति के भय से ही सम्मवत हरिवश्ञ में यह वृत्तान्त उपेक्षित है। हरिवद तथा महाभारत के कुछ विषयो में परस्पर सम्बन्ध नही दिखलाई देता । यया पुरोक्तानि तया य्यासशिष्येण धीमता ।1 तेत्कथ्यमानाममितमितिहास ~ समन्वितम्‌ ! प्रीणात्यस्मानमुतवत्सर्वेपापविनाशनम्‌ ॥ १. हरि० ३ ४. ४५॥ २. महा० १६. २ ~ १५ ३. हरि० २. १०२. ३२ - कृष्णो भोगवतों रम्यामूविकान्तो महायशा । हारकफामात्मसात्कृत्वा समुरं गमपिष्यति 11 ४. महा० ३. १२. ३४ ~ ३५ ~ तां च भोगवतीं पुण्यामृपिकान्तां जनार्दन । हारकामात्मसात्‌ त्वा समुदं गमयिष्यति ॥




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