शान्तिपथ-दर्शन एसी. 1262 | Shantipathdarshan Ac.1262

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ख्टास्तार प्लबिच्लय्य कलकत्ता दि° जैन समाजके क्णेधारोका स्मरण होनेपर सर्वेप्रथम जिनके भ्रति चित्त आकर्षित होता है, वे हैं कन्हैयालाल विरधी चन्दः नामक प्रसिद्ध फर्मके मालिक स्वर्गीय सेठ विरधीचन्दजी साहब, जिनका विशिष्ट व्यक्तित्व श्रीमन्त होनेके साथ-साथ अनेकों स्मरणीय गुणोंका आकर था। भले ही वे आज हमारे मध्य विद्यमान न हों परन्तु उनके गुणोंकी स्मृति उन्हें जीवित बनाये रखनेके-लिये पर्याप्त है ! श्रीमान होनेके नाते समानकं प्रत्येक कायंमें सहयोगी होना तो उनके-लिये स्वाभाविक था ही, मेरा हृदय तो उनकी उस जन्मजात कला-प्रियताका तथा उनकी उस उदार मनस्विताका उल्टेख करना चाहता है जिसकी साक्षी चितपुरका नया जेन मन्दिर मुंह बोलकर दे रहा है। पुरानी बाडीवाले জিলালযন্দ जीर्णेद्धारमें ओर जेन-मवन तथा वेलगछिया वारे उपवन-मन्दिरकं निर्माण कार्यमें भी अपना बहुमूल्य समय देकर आपने অল समाजके गोरवको बढ़ाया है। शुक्ल वर्णवाली देहपर धारण किये गए शुक्ल वस्त्रोंसे जिस प्रकार उनकी बाह्य शुक्लताका परिचय प्राप्त होता है, उसी प्रकार अतिथि सत्कार, सर्वेजन सम्मान, दान-वृत्ति तथा सरल व सरस हृदयता आदि असाधारण गुण उनकी उस आन्तरिक शुक्लताकं परिचायकरहै, जिसकं समक्ष समाजका जन-गर-मन उनका सम्मान करनेमे अपना गौरव समभता था । पैतृक सम्पत्तिके रूपमें ये ही सब गुण उनके सुपुत्र स्वर्गीय बाबू लादूरामजी को और उनके पर्चात्‌ उनके ज्येष्ठ सृपुत्र बाबू मानमल जीको प्राप्त हुए । इन सर्व गुणोंके अतिरिक्त ज्ञान-प्रसारकी अभिरुचि इनके व्यक्तित्वकी विशि- ष्टता है, जिसके कारण इनका सुशिक्षित होना अन्वर्थक है। पूज्य गणेश प्रसादजी वर्णीके प्रति आपको सदासे भक्ति रही है | उनके जीवनकालमें अपने पिताजीके साथ आप बरावर उनके दशनाथ आते रहते थे, फल-स्वरूप खनके भथ निर्मित शान्ति निकेतन' नामक इस आश्रमको आपका प्रेम प्राप्त होना स्वामाविकहै। दो वषं पूवं वर्णी-जन्म-शताब्दीके भवसरपर, पूज्य श्रीकी पावन स्मृतिमें वर्णी-दयेन' नामके जिस ्रन्थका प्रकाशन आश्रमकी भरसे हुआ था, वह आपकी इस अभिरुचिका चिन्ह ই । इस ग्रन्थके प्रकाशनका




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