दशलक्षण महापर्व | Das Lakshan mahaparv

Das Lakshan mahaparv  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चार षहा है। ( ) पनन्तानु ঘস্নী (২) पप्रत्यास्यान (3) भत्यास्थान, शौ (४) सज्वलन र्ती भवि তে ৯ पनन्तानुबन्धो क्रोध का भमावहे गया है, भ्रत उमे गी उत्तम क्षमा भकटे हो भया है गस्यानवर्त युत्रतो के भनन्तानुन्धी দা भमत्यास्यानसम्बन्धं पोष के ঘমানজন্য उत्तमक्षमा विद्यमान है “पातवें भुरास्थानव ती महाव्रती मृनि रजो के भनन्तानुवन्धी, भप्त्याम्याने भीर्‌ अत्यास्यान सम्बन्धी को का भभावहोनेसेवे तीनो के प्रभाव सवधी उत्तमक्षमा के धारक ह| नौवें-दस के गुखस्यान से ऊपर वाले तो पणां उत्तम मा के घारक है उक्त कथन गास्त्रीय भाषा मे ইলা, গনী: थास्त्रो # भम्यासी ही सममः पाएगे । इम सवका तात्पयं यह है |; उत्तमक्षमा মাহি षण नापर बाहर्‌ मे नही क्रिया जा सक्ता है । कपाये মহলা भीर तीव्रता भर उत्तमशमा भाषारित नही है, उसक आधार तो का है । स्यायो मदता-तीग्रता के पाषार पर जो भेद है वह तो तेश्या हं । यद्यपि वध्यवह्यर दकपाय क््ते को भी मक्षमावि का ধনে নালা जाता है, वर भन्तर वचार करने पर दसा भीद्येसः 8 কি বই থাই तो विल्केल शान्त (८ কিন্তু धन्तर मे त्रोषी हो प्रन्त का त्रोषी है नवेव प्रेवेयक के पहुंचने बाते भप्यादृष्टि ह्यति मुनि बाहर इतने अन्त বিয়া ই हैं कि उनकी भात सौषरकर्‌ नमक दिष्टो तव मी उन দার ধা कोर नही, फ़िर भी गास्पकारे मे वहा ह | ওতামহামা 8 पारक नही & भनन्ना. युबन्पी के দাঘী हैं, क्योकि उनके घन्नर ते सात्मा के पराचिस्णी লামা মাধ লতী (पा है। कह में जो को प्रभाव: त्वाह उसके के पाधय से उद्र गान्ति न, ই জিম चिन्ननं के ধলা रहे है, वह पराश्रित रहता है। जेऐ ই मोषत्ते हैं हि पक्ि हे याप्र मुझे गान्त रहना है বাতি । यद गान्न नही र्यतो सोय षटेगे?े मु भवमेमेरो मी होगी তাঁত होगा को मवे भो रिग यदि श्यन्ते যা তী আমা प्रश्ता होगी घोर शृष्पश्य होगा न धागे गे গুল বাঁ होगी




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