सुख क्या है | Sukh Kya Hai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १६ )
उक्त प्रयोजन की सिद्धि हेतु जिन वास्तविकताओ्ों की
जानकारी आवश्यक है, उन्हे प्रयोजनभ्रत तत्त्व कहते हैं तथा
उनके सम्बन्ध मे किया गया विकत्पात्मक प्रयत्न ही
तत्वविचार कहलाता है ।
म कौन ह ?' (जीव तत्त्व), पूणं सुख क्या रै ?
(मोक्ष तत्त्व), इस वैचारिक प्रक्रिया के मूलभूत प्रश्न हैं । मैं
सुख कंसे प्राप्त करू श्रर्थात् आत्मा अतीन्द्रिय-प्रावन्द
की दशा को कैसे प्राप्त हो ? जीव तत्त्व मोक्ष तत्वरूप किस
प्रकार परिणमित हो ? आात्माभिलापी मुमुक्षु के मानस में
निरन्तर यही मथन चलता रहता है ।
वह् विचारता ह कि चेतन तत्त्व से भिन्न जड तत्व की
सत्ता भी लोक में है। आत्मा में अपनी भूल से मोह-राग-द्वेप
की उत्पत्ति होती है तथा शुभाशुभ भावों की परिणति मे ही
यह आत्मा उलभा (वबंघा) हुआ है । जब तक आत्मा अपने
स्वभाव को पहिचान कर आत्मनिष्ठ नही हो जाता तव तक
मुख्यतः मोह-राग-हेंप की उत्पत्ति होती ही रहेगी। इनकी
उत्पत्ति सके, इसका एक मात्र उपाय उपलब्ध ज्ञान का
अत्म-केन्द्रित हो जाना है। इसी से शुभाशुभ भावों का
अ्रभाव होकर बीतराग भाव उत्पन्न होगा और एक समय
वहू होगा कि समस्त मोह-राग-द्वप का भ्रभाव होकर आत्मा
वीतराग-परिणति रूप परिणत हौ जायगा । दूसरे एब्दो मे
पणं सानानस्दमय पर्याय रूप परिणमित हो जायेगा ।
उक्त वैचारिक प्रक्रिया ही तत्वविचार की श्रेणी है ।
स्वानुभूति प्राप्त करने की प्रक्रिया निरन्तर तत्त्वमरयन की
User Reviews
No Reviews | Add Yours...