बकरी | Bakari
श्रेणी : नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
394 KB
कुल पष्ठ :
56
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सिपाही : गांघों जी की ?ै
इन ४ हा, हां, महात्मा गांधी को, मोहनदास कर्मचद गाधी!
अच्छा बताओ यह बया देती है ?ै
सिपाही : दूघ।
डे £ नहीं। कुर्सो, धन और प्रतिष्ठा। (कुछ रुककर) अच्छा
बताओ, यह क्या छाती है ?
2 तह बुद्धि, बहादुरी और विवेक। यह गाघी जी की
बकरी है।
दोनों : (माचते याते हैं)
'उड् करी न अह करी
जी की बकरी,
हर किला फतह करी
गांधी णी की बकरी,
शत्रु को जिवह करी
गाघों जी को बकरी ।
दुर्जव : दीवान जी ! एलान कर दो, हमे गांधी जो की बकरी मिल
गई है। लोग दर्शन करते आएं, पर खाली हाय नहीं।
दोनो : साथ मे कुठ लाएं, घत दौलत, रुपया पैसा 3
सिपाही : पर लोग मानेंगे कृसे कि यह गाधी जी की बकरी है ?
दोनों : हम मानेंगे तो लोग भी मानेंगे । अपता मन चगा, कढौती
ঈমযা।
दुर्जत : यू समझो दोवान जो कि इस बकरी की मा की साबी
মানা
হানা ; माकी माङो माङो माकी मारी माकोमाकी--ः
दुर्जेन : मा, गाघी जी के पास थी।
सिपाह ४ (उछलकर) समझ गएा। जब कुर्तो का छावदान होता है
तो बकरी का बयों नहीं दो सकता ?ै
दुर्जत : यह हुई ने समझदारों को बात । दीवार थो, यह गांधी जो
बकरी : १६
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Nitin
at 2020-05-09 08:01:28