काठ की घटियाँ | Kaath Ki Ghantiyaan

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Kaath Ki Ghantiyaan by सर्वेश्वर दयाल सक्सेना - Sarveshwar Dayal Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बरसात अभय भा जाता ह॒ ह्र्छ “क्यों मारा था 7!” बह योटी--“बाहर कमाने मताऊ उडा लिया था कि उनकी बीवी काटी है और बस घरमें सारी गुम्सा उतार ही ।” वह बेठी बताती रही कि कैसे घोड़ यारी चायुक उन पर टूट गयी थी | क्रिस सरह उनकी एक एक नस फोडे-्सी ढटे करता थी और वह मरीने भर तऊ हलली तेल रगाती रही थी। “मारते सयफे आदमा है लिन ऐसी मार नहीं मारते''-वह उटटती रही 1 वहीं किसा प्रसगम उसने यह भी बताया कि यह सयर राजपाट इहींकी बदीतत है। इनके बाप बहुत घनी पडा थे और यह अकेली ल्डवी थो। मरने पर संत कुछ इन्हींके नाम ल्खि गये । यह न होती तो यह रईसी न होती । और थारी उठाते उठाते भी कहत्ती रही-““तनी नेफ और इतनी सीधी औरत आजफ़्लकी टुनियाम मिलना मुश्किल है। अभी अरुग हो जाय तो उनके सार ठाठ हवा हो जॉय | एक वह हैं और एक ये है तिसने अपना सर बुछ हन्हींके नाम स्िखिया त्या है । हम रोग तो इ्हीके भरोसे जी रहे हैं, वायू। जिम दिनसे नहीं रहेंगी इस घरमें एफ भी नौकर नहीं टिक्रेगा 1! उस दिनकी बात यहीं समाप्त हो जाता है यद्यपि उस रात म॑ बड़े गहरे मानसिक उथल पुथल्में था और दूसरे ठित जय झामको बढ़ते अपेरेम पठा था तमा नीफराननि आरर कहा था-“मल्क्नि ने कटा है अगर पल न रह हा तो चले जाय |” मै उनके पास जाकर खडा हा गया, वे चारपाल पर पड़ी थी। छगता था जैमे उनऊा तयायत पिल्फुल ठीक नहों है। मुझ देखते हा पोर्ली-- “कल नाराज़ हो गये 317




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