बकरी | Bakari

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Bakari by अज्ञात - Unknown

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कविता नागपाल - Kavita Naagpal

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सर्वेश्वर दयाल सक्सेना - Sarveshwar Dayal Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिपाही : गांघों जी की ?ै इन ४ हा, हां, महात्मा गांधी को, मोहनदास कर्मचद गाधी! अच्छा बताओ यह बया देती है ?ै सिपाही : दूघ। डे £ नहीं। कुर्सो, धन और प्रतिष्ठा। (कुछ रुककर) अच्छा बताओ, यह क्या छाती है ? 2 तह बुद्धि, बहादुरी और विवेक। यह गाघी जी की बकरी है। दोनों : (माचते याते हैं) 'उड् करी न अह करी जी की बकरी, हर किला फतह करी गांधी णी की बकरी, शत्रु को जिवह करी गाघों जी को बकरी । दुर्जव : दीवान जी ! एलान कर दो, हमे गांधी जो की बकरी मिल गई है। लोग दर्शन करते आएं, पर खाली हाय नहीं। दोनो : साथ मे कुठ लाएं, घत दौलत, रुपया पैसा 3 सिपाही : पर लोग मानेंगे कृसे कि यह गाधी जी की बकरी है ? दोनों : हम मानेंगे तो लोग भी मानेंगे । अपता मन चगा, कढौती ঈমযা। दुर्जत : यू समझो दोवान जो कि इस बकरी की मा की साबी মানা হানা ; माकी माङो माङो माकी मारी माकोमाकी--ः दुर्जेन : मा, गाघी जी के पास थी। सिपाह ४ (उछलकर) समझ गएा। जब कुर्तो का छावदान होता है तो बकरी का बयों नहीं दो सकता ?ै दुर्जत : यह हुई ने समझदारों को बात । दीवार थो, यह गांधी जो बकरी : १६




User Reviews

  • Nitin

    at 2020-05-09 08:01:28
    Rated : 8 out of 10 stars.
    लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सैना किताब में कुछ पेज गायब है साथ ही कुछ पेज सही तरह से स्कैन नहीं है
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