वाल्मीकीय रामायराा-कोश | Valmikiy Ramayana Kosh

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Valmikiy Ramayana Kosh by रामकुमार राय - Ramkumar Rai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अगस्त्य ] (६) [ भगरत्य (२ ३२, १३-१४ ) ।” 'अस्मिन्नरण्ये भगव्नगस्त्यो मुनिसत्तम ॥ वसतीति मया नित्य कथा कथयता शतम्‌ ।, (३ ११, ३०.३१ 2) । হন धीमत ^ (३ ११, ३२ ) । জমজ ने समस्त रोषौ के हित की कामना से मृष्यु-स्वहूप बातापि और इल्वछ का वेग्रपूर्वत दमन करके दक्षिण दिशा को शरण लेने के योग्य बना दिया ( ३ ११, ५३-५४ ) । “देवताओ की प्रार्थना से महपि अगस्त्य ने श्राद्ध मे शाकरूपधारी महान अशुर वातापि का जान-बूझ कर भक्षण कर्‌ लिया । तदनन्तर ध्वादकमं सम्षन हो गया', ऐसा कहकर ब्राह्मणो के हाथ मे अवनेजन का जल दे कर इल्वल ने अपने आता वातापि का नाम लेकर पुकारा । इस पर उस ब्राह्मणघातो अषुर से बुद्धिमान मुनिश्रेष्ठ अगस्त्य ने हे्रकर कहा जिस जीवशाकषूपधारो तेरे श्राता राक्षस को मैंने भक्षण करके पचा लिया है वह मव यमलोक में जा पहुँचा है।' मुनि के वचन को सुनकर इत्वख ने उनका वध करना चाहा, किन्तु उसने ज्योही अगस्त्य पर आक्रमण किया, अगस्त्य ने अपनी अग्नि तु य दृष्टि से उस राक्षस को दग्ध वर दिया जिससे उसकी भो मृत्यु हो गई । (३ ११, ६१-६७ ) ।” इनके आश्रम भा वणेन किया गया है (३ ११, ७३-७६ ७९-८० ८६, ८९-९३) । इन्होने दक्षसो का दध करक दक्षिण दिशा को रण लेने के योग्य वना दिया ( ३ ११, ८१-८४ ) । एक बार पवतश्रेष्ठ विस्ध्य सूर्य का मार्ग रोकने के उद्देश्य से बढ़ने लगा था किन्तु महपि अगस्त्य के कहेने पर नम्र हो गया (३ ११, ८५ ) । धुष्यकर्मा, (३ ११, ८१) | 'अय दीर्घायुपरतस्य लोक विश्रुतकर्मंण । अगस्त्यस्याश्रम श्रीमान्‌ विनीतमूगसेवितत ॥, (३ ११, ८६) । “एप छोकाचित साघुहिते नित्य रत सताम्‌1 अस्मानविगतानेप श्रेयसा मोज- यिष्यति 11 (३ ११,८७ ) ! इनके आश्रम मे प्रवेश करके लक्ष्मण ने अगस्त्य वे शिष्य से भेंट की और उससे अगस्त्य जी को राम वे यागमन वा सदेश देने के लि का ( ३ १२, १४ ) । लदमण की वात सुनकर उप सिष्य मे महूवि अगस्त्य को समाचार देने के लिये उनकी अग्निशाल्य भें प्रवश क्या, और दूरो के सिये दुर्य, मुनिरेष्ठ अगस्त्य को राम वे आगमन का समाचार दिया ( ३ १२,५-९ )। श्रीराम, सीता, नथा लकमण ते आगमन का समाचार सुनकर अग्रस्त्य ने उन लोगो को तत्काल अपने पास छाने के लिये शिष्य को आता दी (३ १२, ९-१२ ) । श्रीराम, सीता, तथा लूदमण के आश्रम में प्रवेश करते ही अपने प्विष्यों से घिरे हुये मुनिवर अगर्त्य अग्निधाला से बाहर निकले (३ १२, २१ ) । अगस्त्य या दर्शन करते ही श्रीराम ने लक्ष्मण से बहा * अगस्त्य मुपि आश्रम से बाहुर निवल रहे हैं । य तपस्या दे: मिधि हैं। इनक विशिष्ट तेज के अधिवय से ही मुस् प्रा चलता है कि ये अगस्त्प जी 22




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