भारतवर्ष का इतिहास प्रथम भाग | Bharatvarsh Ka Itihas Pratham Bhag
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
नाम - ईश्वरी प्रसाद
जन्म - 29.12.1938,
गाँव - टेरो पाकलमेड़ी, बेड़ो, राँची
परिजन - माता-फगुनी देवी, पिता- दुखी महतो, पत्नी- दुलारी देवी
शिक्षा - मैट्रिक; बालकृष्णा उच्च विद्यालय, राँची, 1952
आई० ए०; संत जेवियर कालेज, रॉची, 1954-1955
बी० ए०; संत कोलम्बस कालेज, हजारीबाग, 1956-1957
व्यवसाय - शिक्षक; बेड़ो उच्च विद्यालय, 1958-1959, सिनी उच्च विद्यालय, 1960
पशुपालन विभाग, चाईबासा, 1961, राँची, 1962-1963 मई 1963 से एच० ई० सी०, 1992 में सहायक प्रबंधक के पद से सेवानिवृत
विशेष योगदान --
राजनीतिक -
• एच० ई० सी० ट्रेड यूनियन में सीटू और एटक का महासचिव
• अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार, चेकोस्लोवाकिया में ट्रेड
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिन्दुस्तान का पहले फा दाल ५
1 उत्तरी भारतवर्ष में आज्मण, सन्रिय, स्य धार सुमल-
मानों में पाये जाते ह तथा दक्षिय में भो मिलते हैं: दूसरे
वे जो फाले, कृरूप प्यार चपटो नाकवाले हैं जा छव तफ
जङ्ने मे पाये जात ईइ 1 एफ तीसरी शकल फे लाग झार भी
हैं। किन्तु उनकी संस्या अधिफ मही ह। वे प्रा, तिव्यते
सैपाल प्यार हिमालय फी तराई में पाये जाते हैं। दक्षिण
में प्रधिफांश द्रविड़ जाति फे लोग हैं । पापागन-फाल फे
लामो फी प्रप्ता द्रविड लेग प्धिक सभ्य थे। निश्चित
रूप से नहीं कहा जा सकता कि भारत में यह्ट जाति फहां से
प्रार् परन्तु यद् विचार किया जाता द कि वह उत्तर-पश्चिम
कफे द्योः से লা दहागो। इस जाति फे लाग झाज-कल
मद्रास प्रार यम्बई प्रान्तों में पाये जाते हैं । ये लोग तामिल,
सैलगू क्रार फनाड़ी भाषा बालते हैँ। दंगाल में भी कुछ
ट्रविष्ठ फौम के लेग रहते थे परन्तु बाद में श्रार्यो' में उनका
घंगाल ध्यार उत्तरी हिन्दुस्तान से निकाल दिया तय ये लोग
उदाना आर छाटा नागपुर में रहने लगे | यहाँ ये गोंड तथा
संघाल फे नाम से प्रसिद्ध हुए । कुछ इतिहासकार वर्णन
फरने दे कि ये उत्तरी भाग फे दक्षिण-पूर्व की श्रारसे जल
झार स्यतत दवारा भये घे { दिन्दुस्तान षे निवासी किसी
एफ जाति फे नहीं हैं। बहुतन्सो विदेशी जातियों फं लोग
यहाँ आये झार रहने लगे । उनमें से मुख्य ये ए---
£ घध्यायं--ये लोग कई शताव्दियां तक सध्य-एशिया से
हिन्दुस्तान में आते रहे। ऋग्वेद में इसका वर्णन है। ब्राह्मण
क्न्निय, चश्य इन्हां ष्टी सन्तान समभ जातं ६ । परादा भार
जंगलों ने इन्हे बहुत दिन तक दक्षिण में जाने से राका । इसी
लिए झार्या के रश्नन्सहन, रोति-रिवाज्ो फा दक्षिण में कम
झसर हआा '
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