भगवती आराधना | Bhagvati Aaradhna
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
365
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६०४ अगवती आराधना
प्रशस्यगुणसद्भाव॑ज्वरवृद्धनिमितितां चापेद्य न शोभनभिति वो मूर्षकान्ततों नापि सत्यमेबेति दधात्म-
कंता ॥११८९॥।
संसयवयणी य तहा असच्चमोसा য অন্ুমী নাঝা |
णवमी अणक्खरगदा असच्चमोसा इवदि णेया ॥ ११९०।
'संसयवधणो' किसय॑ स्थाणुरुत पुरुष हत्यादिका हयोरेकस्य सद्भावमित्तरस्याभाव चपिक्षय
द्विरूपता । *जणक््षरगदा' अ ङ्गुलिस्फोटादिष्वनि कृताकृतसकेतपुरुषपेक्षय प्रतौतिनिमित्ततामनिमित्तता च
प्रतिपद्यते इत्यु मयस्पा ।1११९०॥
उर्गमरप्यायणएसणाहिं पिंडपुवधि सेज्जं च |
सोधितस्स य पुणिणो विसुज्न्रए एसणासमिदी ॥ ११९१॥
'उरगस उप्पादणएसणाहि' उद्गमोत्पादनैषणादोष रहित भक्तमुपक्ररण वर्सात न गृह्लुत एपणासमितिर्भ-
वतीति सूत्रार्थ । दश्वकालिकटीकाया श्रीविजयोदयाया प्रपञ्चिता उद्गमादिदोषा इति नेह प्रत-
न्यन्ते ॥११९१॥
आदाननिक्षेप्रणसमितिनिरूपणा ग्राधा--
सहसाणाभोगिददुप्पमज्जिय अपच्चबेसणा दोसो ।
परिरमाणस्स हवे समिदी आदार्णाणक्खेवो ॥ ११९२
'सहसणाभोगिद' आलोकनप्रमाजंने कृत्वा आदान निक्षेप इत्येको भद्ध । अनालोक्य प्रमार्जन कृत्वा
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दुध उत्तम नहीं है ? यदि दरूमरा कहे कि माधुयं आदि प्रशस्त गुणोकी भपेक्षा तो उत्तम है किन्तु
ज्व रको बढानेवाला होनेसे उत्तम नहीं है तो इस प्रकारके वचन न सवथा असत्य हैं और न सवथा
सत्य हैँ किन्तु दोनो रूप होनेसे उभयात्मक हँ । यहं उभयात्मकसे इन वचनोको सत्य জীব
असत्यरूप नही समझना चाहिए | किन्तु सत्य भी नहीं और असत्य भी नही अर्थात् अनुभयरूप
समझना चाहिए ॥११८५०॥।
गा०--आठवी असत्यमृषा भाषा सदय बचनो है । जसे यह् स्थाणु है या पुरुष । दोनोमेसे
एकके सद्भाव गौर दूसरेके अभावकी अपेक्षा यह वचन उभयरूप है। और नोवी असस्यमुषा
भाषा अनक्षरात्मक भाषा है। जैसे अंगुलि चटकाने आदिका शब्द | जिस पुरुषने सकेत ग्रहण
किया है उसे तो ध्वनिसे प्रतीति होती है दूसरेको नही होती । इस त्तरह यह वचन उभयरूप
है ॥११९०॥
अब एषणा समितिकां कथन करते हैं--
या०--उद्गम, उत्पादन मौर एषणा दोषोसे रहित भोजन, उपकरण भौर वसतिको
ग्रहण करनेवारू मुनिकी एषणा समिति निमंल होती है ॥११९१॥
आदाननिक्षेपण समितिका कथन करते हैं--
गा०-टी०--विना देखे और विना प्रमाजेन किये पुस्तक आदिका ग्रहण करना या रखना
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