तत्त्व - चिन्तामणि भाग 5 | Tatva Chintamani-5
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
506
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामके गुण और चरित्र. ७
नारियोंको नेत्रोंका परम छाम प्रदान करनेके लिये जनकपुरमें जाते हैं |
वरहो कुक देर हो जाती है, तत्र मनम संकोच करते है कि गुरुजी कहीं
नाराज तो न होंगे | इस प्रसङ्गे श्रीतुक्सीदासजी कहते है
कौतुक देखि चले गुरु पाहीं। जानि विलंबु त्रास मन माहीं |
जासु त्रास डर फूं डर होई। भजन प्रमाउ देखावत सोई ॥
समय सम्म विनीत अति सङ्कच सहित दोउ भाई ।
गुर पदं पंकज नाद् सिर वेठे आयसु पाह ॥
रातको दोनों भाई नियमपूर्वक मानो ग्रेमसे जीते हुए प्रेमपूर्वक
श्रीयुरुजीके चरणकमल दबाते हैं---
तेद दोउ वंध प्रेम जनु जीते । गुर पद कमरु परोत प्रीते ॥
मुनि श्रीवरिष्ठजी अपकरे कुलपुर हैं। आप सव प्रकारसे
गुरुकी सेवा करनेमें मानो अपना सौमाग्य समझते हैं| वनम जव
वशिष्ठजी भरतजीका पक्ष लेकर भगवानसे कहते हैं-.-
सब के उर अंतर बसहु जानहु भाउ कुमाउ |
पुरजन जननी भरत हित होई सो कहिअ उपाड ॥
-तव्र भग्तरान् श्रीमरतजीपर गुरुका स्नेह देखकर भरतजीके
माग्यकी सराहना करते इए कहते हैं-
जे गुर पद अंबुज अनुरागी । ते रोकं बेदहूं वड़मागी ॥
राउर जा पर अस अनुरागू । को कटि सकद भरत कर मागू॥।
धजो मनुष्य गुरुके चरणकमटकि प्रेमी हैँ वे रोक ओर वेद
दोनोंमें बडभागी हैं | फिर जिसपर आपका ऐसा स्नेह है, उस
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